नवरात्र व्रत 2020

नवरात्र में माँ शक्ति के नौ रूपो का पूजन किया जाता है। जिसमें भक्त नौ दिनों को तक व्रत-उपवास रखते है। तथा माता का आशीर्वाद प्राप्त करते है। अपनी सामथ्र्य के अनुसार कुछ लोग पहला दिन तथा अष्टमी के दिन उपवास रखते है, तथा कुछ लोग पूरे नौ दिनो तक उपवास रखते है। जिनका माँ दुर्गा पर विश्वास होता है। माँ दुर्गा उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है। नवरात्रो में उपवास रखने से मन को अपार शांति प्राप्त होती है। तथा आत्मा का शुद्धिकरण होता है, और मन में आने वाले दुषित विचारो का अंत होता है।

नवरात्र व्रत कथा— नवरात्रा का व्रत न केवल लोगों द्वारा लिया जाता है। बल्कि पुराणों में बताया गया है कि नवरात्रों का व्रत देवताओं द्वारा भी लिया गया। जब  देवताओं के राजा देवराज इद्र राक्षस वृतासुर से परेशान हो चुका था तो देवराज ने माता शक्ति का व्रत लिया एवं उनका पूजन किया, भगवान विष्णु ने मधु नामक दानव का वध करने के लिए नवरात्र व्रत लिया, स्वंम भगवान शिव ने माँ भगवती का पूजन किया था। इसी प्रकार भक्त भी अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए माँ शक्ति का उपवास करने है। जिससे घर में सुख-शांन्ति एवं धन आता है।
आइए जानते है। ये नौ रूप माँ शक्ति के कौन-कौन से है। चैत्र नवरात्र इस वर्ष 25 मार्च से 2 अप्रैल तक है। हिंदुओं का नया वर्ष इसी दिन से प्रारंभ होता है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।
पंचम स्कन्दमातेति कात्यायनीति षष्ठम च ।
सप्तमं कालारात्री महागौरीति चाषष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
उक्तन्येतानि नमानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

प्रथम माँ शैलपुत्री
प्रथम मां शैलपुत्री—यह माता शक्ति का पहला रूप है। माँ शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। इनका वाहन वृषभ है। पर्वतराज हिमालय के पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। माँ शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधर चक्र जाग्रत एवं आत्मबल प्राप्त होता है।
स्तुति मंत्र—
या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः


माँ ब्रह्मचारिणी

द्वितीया मां ब्रह्मचारिणी—  बह्मचारिणी माँ शक्ति का दूसरा रूप है। इनके दाएं हाथ में जप करने की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। माँ बह्मचारिणी की आराधना करने से तप, त्याग, वैराग्य और संयम की प्राप्ति होती है। माँ बह्मचारिणी का पूजन करने से स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत होता है।
 
मंत्र
दधानां करण्द्याभ्यामक्षमाला कमण्डल ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।



माँ चंद्राघंटा
तृतीय मां चंद्राघंटा— यह माता का तीसरा रूप है। इनकी सवारी सिंह है। इनके माथे पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है। इनकी दस भुजाऐं है। जिसमें अस्त्र-शस्त्र है। माँ चंद्रघंटा की अराधना से मणि चक्र जाग्रत होता है।

मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकेर्युता ।
प्रसादं तमुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता ।।



माँ कुष्माडा
चतुर्थ मां कुष्माडा— यह माता का चतुर्थ रूप है। इनकी सवारी सिंह है। इनकी आठ भुजाऐं है। जिनमें धनुष-वाण, कमल-पुष्प, कमंडल, अमृत कलश, चक्र व गदा है। और इनकी आठवी भुजा में सभी सिद्धिया एवं जप माला है। इस दिन साधक अपना ध्यान माँ के चरणों में अनाहत चक्र में स्थित होता है।

मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः



माँ स्कन्दमाता


पंचम मां स्कन्दमाता- यह माता का पांचवा रूप है। इनकी सवारी सिंह है। इनकी आठ भुजाऐं है। जिनमें धनुष-वाण, कमल-पुष्प, कमंडल, अमृत कलश, चक्र व गदा है। और इनकी आठवी भुजा में सभी सिद्धिया एवं जप माला है। स्कन्दमाता का पूजन करने से साधक का मन विशुद्ध चक्र में होता है।

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्द रुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः


माँ कात्यानी
षष्ठम मां कात्यानी— यह माता का छठवा रूप है। इनकी चार भुजाऐं है, दाईं तरफ की भुजा में एक हाथ अभय मुद्रा में तथा दूससा हाथ वर मुद्रा में है। बाईं तरफ वाली भुजा में एक हाथ में तलवार तथा दूसरे हाथ में कमल का फूल है। इनका वाहन सिंह है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है।

चंद्रहासोज्ज्वलकरा, शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातनी ।।



माँ कालरात्री

सप्तम मां कालरात्री- यह माता का सातवां रूप है। इनकी वाहन गदर्भ है। इनकी दाहनी भुजा के दाहिने हाथ वर मुद्रा में है। नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बांयी तरफ उपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खडग् है। इनकी तीन आँखे है। तथा गले में विद्युत के समान चमकने वाली माला है। यद्यपि माता का यह रूप डरावना लगता है। लेकिन माता भक्तों को फल देने वाली है। इनके नाम के स्मरण मात्र से भूत-पिचास, राक्षस सभी भयभीत होकर भाग जाते है।

ऊँ देवी कालरात्रें नमः ।




माँ महागौरी
अष्ठम मां महागौरी- यह माता का आठवां रूप है। इनकी वाहन वृषभ है। इनका वर्ण गौर है। इनके सभी आभूषण व वस्त्र सफेद है। इनकी चार भुजाएं है। इनकी दाहिनी भुजा में एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरा हाथ अभय मुद्रा में है।

श्वेतेे वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि ।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा ।।



माँ सिद्धिदात्री
नवम मां सिद्धिदात्री- यह माता का नवां रूप है। इनकी दाहिनी भुजा में एक हाथ में चक्र तथा दूसरे हाथ में गदा है। वाईं की भुजा में एक हाथ में शंख दूसरे हाथ में कमल का पुष्प् है। मां सिद्धिदात्री अनेक सिद्धिया प्रदान करने वाली देवी है।

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रर्घकृत शंखराम ।
कमलस्थितां चतुभुंजा सिद्धिदात्री यशस्वनीम ।।
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम दुर्गा त्रिनेत्राम ।
 



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