पिप्पलाद ऋषि दधीचि के पुत्र थे, इनकी माता का नाम गभस्तिनी था, पिप्पलाद के पिता ऋषि दधीचि जिन्होनें संसार के कल्याण करने के लिए अपनी देह का त्याग किया था, इनकी शरीर की अस्थियों से देवताओं ने वज्र का निर्माण कर राक्षक वृतासुर का वध किया। जिस स्थान पर ऋषि दधीचि ने अपनी देह का त्याग किया था, उस जगह पर कामधेनु ने अपनी दुग्ध की धारा छोड़ी थी। पिप्पलाद उसी स्थान पर तपस्या करते थे, इस स्थान को दुग्धेश्वर कहा जाता है। ऋषि दधीचि एवं उनकी पत्नी गभस्तिनी महान शिव भक्त थे। भगवान शिव दोनों की भक्ति से प्रसन्न हुये तथा उनके यहाँ अवतार लिया।
पिप्पलाद ऋषि की कथा (piplad rishi ki katha)
ऋषि दधीचि को संसार के कल्याण के लिए देह का त्याग करना पड़ा देवताओं ने उनकी अस्थियां से वज्र बनाकर वृत्रासुर राक्षस का वध किया, तथा उनकी पति ने जब यह देखा तो वह भी सती हो गयी यद्यपि उनकी पत्नी गभस्तिनी गर्भवती थी। देवताओं ने जब देखा कि गभस्तिनी सती हो रही है, तो सभी देवताओं ने उसे बताया कि वंश को चलाने के लिए तुम्हारा जीवित रहना जरूरी है, लेकिन गभस्तिनी न मानी उसने अपने गर्भ को देवताओं को सौप दिया। देवताओं ने गर्भ को पीपल को सौप दिया। इस प्रकार पिप्पलाद का पूरा बाल्यकाल एवं पालन पीपल द्वारा ही किया गया।
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पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा कि किस कारण से मेरे जन्म से पूर्व मेरी माता सती हुयी तथा पिता ने अपना देह का त्याग किया। देवताओं ने पिप्पलाद को बताया कि शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा हुआ। पिप्पलाद को शनिदेव की यह बात अच्छी नही लगी, और उन्होनें कहा कि शनि को इसका दण्ड भुकतना ही होगा।
उन्होनें शनि पर अपने ब्रहृादण्ड से प्रहार कर दिया शनिदेव इस प्रहार को सहन न कर पाये और और नक्षत्र मण्डल से नीचे गिर गये। इस प्रकार शनिदेव ब्रहृादण्ड के प्रभाव से बचने के लिए भगवान शिव के पास पहुँचे भगवान शिव ने पिप्पलाद को समझाया कि इनमें शनि का कोई भी दोष नही है। शनि ने तो केवल सृष्टि के नियमों को पालन किया है। पिप्पलाद ने ब्रहृादण्ड के प्रभाव को कम कर दिया शनिदेव पुनः नक्षत्र मण्डल में स्थिर हो गये। इस प्रकार शनिदेव ने पिप्पलाद को वचन दिया कि वे 14 साल तक के बालक को अपने प्रभाव से मुक्त रखेगे।
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