यह मुख्य रूप से एक प्रकार की वनस्पति (लाइकेन) है, ये पेड़ो की छालो पर,
पत्थरों, चट्टानों पर उगता है। जिस कारण इसे पत्थर फूल या
शिलापुष्प भी कहा जाता है। उत्तराखण्ड तथा अन्य हिमालयी क्षेत्रों में कई किस्म के औषधीय पौधों की प्रजातिया पायी जाती है। जिनका उपयोग दैनिक जीवन में किया जाता है। इनमें से एक है पत्थर फूल/ झूला जो भारत में मुख्य रूप से उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर तथा नीलगिरी की पहाड़ियो में पेड़ की छालो एवं पत्थरों एवं चट्टानों में पाया जाता है। ये जहाँ प्रदुषित हवा होती है, वहाँ नही उगते जहाँ केवल शुद्ध हवा होती है वही उगते है। इसलिए इन्हें शुद्ध हवा का अच्छा सूचक माना जाता है।
इनमें से कुछ जड़ी-बूटी का शोधन करके आयुवेर्दिक दवाईयां तैयार की जाती है। इनमें से एक है। झूला or दगड़ फूल जिसका उपयोग औषधीय रूप में किया जाता है, इसके अलावा स्थानीय लोगो द्वारा पत्थर फूल/ झूला से अच्छी आय प्राप्त की जाती है। इसे पेड़ो से एकत्र किया जाता है, जिसे बोरियो में भरकर इसे बेच देते हैं। जिससे एक अच्छी आमदानी प्राप्त हो जाती है। उत्तम किस्म के पत्थर फूल/ झूला/मक्कू को फ्रांस आदि देशो के लिए निर्यात किया जाता है।
इसका उपयोग गरम मसाला, साबर व हवन सामग्री बनाने में किया जाता है। खाने में जायका बढ़ाने व सुगन्ध के लिए विशेषकर सब्जियों व सूप में इसका उपयोग किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग औषधीय रूप में भी किया जाता है।
- इसका उपयोग करने से पाचन सही रहता है। जिससे गैस, कब्ज आदि की समस्या दूर हो जाती हैै।
- किडनी में पथरी की समस्या में सहायक
- शरीर के अंदरूनी सूजन को भी ठीक करने में सहायक है। इसमें एंटी-फगल, एंटी-बैक्ट्रीयल और एंटी-वायरल गुण पाये जाते है।
पत्थर फूल (Parmelia perlata) के अन्य नाम
हिन्दी— पत्थरफूल, छरीला, मक्कू/झूला, भूरिछरीला
संस्कृत— शिलापुष्प, शैलेय, कालानुसार्यक, शीतशिव
अंग्रेजी— येलो लाइकेन, लिथो लाइकेन, स्टोन फ्लावर
गुजराती— घबीलो, पत्थरफूला, छडीलो
तमिल— कलपसी, कलापु
तेलगु— शैलेय मनेद्रव्यमु, रतिपंचे
संस्कृत— शिलापुष्प, शैलेय, कालानुसार्यक, शीतशिव
अंग्रेजी— येलो लाइकेन, लिथो लाइकेन, स्टोन फ्लावर
गुजराती— घबीलो, पत्थरफूला, छडीलो
तमिल— कलपसी, कलापु
तेलगु— शैलेय मनेद्रव्यमु, रतिपंचे
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