वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रर्घकृत शंखराम ।
कमलस्थितां चतुभुंजा सिद्धिदात्री यशस्वनीम ।।
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम दुर्गा त्रिनेत्राम ।
नवरात्र के नौवे दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, माता सिद्धिदात्री की अपने भक्तों पर असीम कृपा रहती है, अपने भक्तों को माता सभी सिद्धिया प्रदान करती है। माता को हलवा पूरी और खीर का भोग लगा कर पूजा-अराधना की जाती है, तथा व्रत का समापन किया जाता है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धिया है, ये सभी सिद्धिया माता अपने सभी भक्तों को प्रदान करती है।
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयाात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता ।
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता ।।
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि ।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ।।
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम ।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम ।।
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है ।
तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है ।।
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो ।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो ।।
तू सब काज उसके करती है पूरे ।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे ।।
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया ।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया ।।
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली ।
जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली ।।
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा ।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा ।।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता ।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता ।।
0 Comments
thank for reading this article