मां कुष्मांडा श्लोक
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
चतुर्थ माँ कुष्मांडा— नवरात्र के चतुर्थ दिन माँ कुष्माडा देवी की उपासना की जाती है, माता कुष्माडा सृष्टि की आदिशक्ति है, जब सृष्टि में कुछ भी नही था, तब माता कुष्माडा ने सृष्टि की रचना की। इनकी शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान प्रकाशित है। यह माता का चतुर्थ रूप है। इनकी सवारी सिंह है। इनकी आठ भुजाऐं है। जिनमें धनुष-वाण, कमल-पुष्प, कमंडल, अमृत कलश, चक्र व गदा है। और इनकी आठवी भुजा में सभी सिद्धिया एवं जप माला है। इस दिन साधक अपना ध्यान माँ के चरणों में अनाहत चक्र में स्थित होता है।
माँ कुष्मांडा का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
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