हिंदू परंपरा के अनुसार धनतेरस के दिन खरीदारी करने से घर में सुखःसमृद्वि आती है। पीयूषमणि भगवान धन्वन्तरि संसार के रोर्गात प्राणियों के लिए अमृत कलश लिए हुये समुद्र मंथन से उत्पन्न होने वाले धन्वन्तरि ने संसार के लिए आयुर्वेद का प्रचार किया।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहा जाता है। व्यापारियों के लिए इस दिन का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन लोग सतेल स्नान करते है। व्यापारी लोग अपना हिसाब-किताब समाप्त करके बही खाता तथा रोकड़ की पूजा करते है। धनतेरस के दिन ही धनवन्तरि अमृत कलश को लेकर अवतरित हुये थे, इसी दिन से लोग धनतेरस के दिन बर्तन खरीदते है।
धनतेरस का शुभ मुहूर्त
12 नवंबर
रात्रि 11:30 से 1:07 बजे तक
13 नवंबर
सुबह 5:59 से 10:06 बजे,
11:08 से 12:51 बजे
दिवा 3:38 से संध्या 5:00 बजे तक
धनतेरस जी की आरती
ऊँ जय धन्वन्तरि देवा, स्वामी जय धन्वन्तरि जी देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।
स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ऊँ जय धन्वन्तरि देवा।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।
स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ऊँ जय धन्वन्तरि देवा।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।
स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ऊँ जय धन्वन्तरि देवा।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।
स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ऊँ जय धन्वन्तरि देवा।।
तुुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।
स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ऊँ जय धन्वन्तरि देवा।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।
स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ऊँ जय धन्वन्तरि देवा।।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।
रोग-शोक न आए, सुख-समृद्वि पावे।।
स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ऊँ जय धन्वन्तरि देवा।।
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