महाशिवरात्री 2021: पूजा का शुभ मुहूर्त

प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि का पावन त्यौहार फाल्गुन मास की कष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, इस दिन सभी शिव भक्त पूरे श्रद्धा से भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा-आराधना करते है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था।

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महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा करने से मनोकामना पूर्ण होती है। तथा भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख शांति आती है। इस दिन श्रद्धालु बिल्वपत्र, दही, शक्कर, शहद, दूध, गंगाजल, धतूरा आदि चिजों से भगवान शिव की पूजा-आराधना करते है।

 

महाशिवरात्रि 2021 पूजा का शुभ मुहूर्त

निशिता काल  11 मार्च: रात 12 बजकर 06 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट ।

रात्रि प्रथम प्रहर 11 मार्च: शाम 06 बजकर 27 मिनट से 09 बजकर 29 मिनट ।

रात्रि द्वितीय प्रहर  11 मार्च: रात 9 बजकर 29 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट ।

रात्रि तृतीय प्रहर 11 मार्च: 12 बजकर 31 मिनट से 12 मार्च को 03 बजकर 32 मिनट ।

 

शिव स्तुति श्लोक

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।।

 

पंचाक्षर स्तोत्र

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै न काराय नमः शिवायः॥ 

अर्थात- जिनके कंठ मे सांपों का हार है, जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अनुलेपन हुआ है और दिशांए ही जिनके वस्त्र हैं, उन अविनाशी महेश्वर 'न' कार स्वरूप शिव को नमस्कार है।

 

 


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