रामकृष्ण परमहंस

रामकृष्ण परमहंस

रामकृष्ण परमहंस एक संत थे, इनका जन्म 18 फरवरी 1836 में कामारपुकुर बंगाल में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर था, इनके पिता का नाम खुदीराम एवं माता का नाम चन्द्रा देवी था। कहा जाता है कि जब इनके पिता गया में थे, तो उन्होंने स्वप्न देखा कि उनके यहा भगवान (विष्णु के अवतार गदाधर के रूप में जन्म लेगे, ठीक इसी प्रकार इनकी माता चन्द्रा देवी को भी एक विचित्र अनुभव हुआ शिव मंदिर में उनके गर्भ को कोई रोशनी प्रवेश कर रही है।



मात्र 7 वर्ष की आयु में बालक गदाधर के पिता का देहान्त हो गया, अपनी छोटी सी आयु में इन्हें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन इन्होंने हिम्मत नही हारी, इनके बड़े भाई का नाम रामकुमार चट्टोपाध्याय जो कि कोलकता में एक संचालक के रूप में कार्यरत थे।

विवाह-
इनका बाल-विवाह शारदा से तय हुआ लेकिन शादी को लेकर इनका कोई मोह नही था। कई लोगो ने अफवाह फैलायी की गदाधर (रामकृष्ण परमहंस) का मानसिक संन्तुलन बिगड़ गया है, जिससे इनकी माता चन्द्रा देवी एवं इनके भाई रामकुमार ने इनका विवाह करने की ठानी ताकि गदाधर का मानसिक संन्तुलन ठिक हो जाय, गदाधर ने खुद बताया की उनके लिए लड़की रामकुमार मुखर्जी के यहा जयरामबाटी मे मिलेगी, जो कि उनके यहां से 3 किमी0 की दूरी पर है, फिर इनका विवाह तय हुआ 18 वर्ष पूरे होने तक कन्या शारदा जयरामबाटी में रहती थी, एवं 18 वर्ष पूरे होने पर रामकृष्ण परमहंस के साथ दक्षिणश्वर में रहने लगी।

माँ काली में इनकी श्रद्धा -
 माँ काली के प्रति इनकी गहन श्रद्धा थी। ये कहते थे, कि माँ काली उन्हे दर्शन देती है। वे माँ को अपने हाथो से भोजन कराते है। माँ काली के जाने पर छोटे बच्चो की भाॅती रूदन करने लगते थे, अपने बडे़ भाई की मुत्यु के बाद ये अधिकर समय ध्यान में मग्न रहते थे, रामकृष्ण परमहंस माँ काली को अपनी माता एवं समस्त संसार की माता के रूप में देखते है।

रामकृष्ण परमहंस एवं स्वामी विवेकानन्द - 
स्वामी विवेकानन्द रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्यों में से एक थे, स्वामी विवेकानन्द का बच्चन का नाम नरेन्द्र था, रामकृष्ण परमहंस विवेकानन्द को नरेन्द्र नाम से संबोधित करते थे, रामकृष्ण के अंतिम दिनों में इनके शिष्य इनका हाल पुछते थे तो वे इसे उनकी अज्ञानता समझकर मुस्कराते थे, इनके शिष्य इन्हें ठाकुर कह कर पुकारते थे, इनके शिष्य विवेकानन्द जो कि हिमालय में एकान्त वास में तप करना चाहते थे, अपने गुरू के पास आज्ञा लेने पहुचते है तो ठाकुर रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि हमारे आस-पास के लोग भूख से तड़प रहे है, चारो ओर अज्ञान फैला हुआ है। और तुम हिमालय में एकान्त में समाधी का आन्नद लेना चाहते हो क्या तुम्हारी आत्मा यह स्वीकार कर पायेगी। इस प्रकार स्वामी विवेकानन्द लोगो की सेवा में लग गये, रामकृष्ण परमहंस के गले में सूजन थी, जिसे डाॅक्टरो ने कैंसर बताया, तथा उनसे परामर्श किया कि वे समाधी न ले वे मुस्कराये, 1886 ई0 को 16 अगस्त को इन्होंने अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया। तथा सदैव के अमर हो गये।

स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मठ की स्थापना की जो बेलूर मठ द्वारा संचालित है। इन्होंने रामकृष्ण परमहंस के विचारो को पूरी दुनिया में फैलाया इनके अनुसार सभी धर्मो का आधार पे्रम, न्याय, और परिहित है।

इनके मुख्य अनुयायी- केशवचंद्र सेन, विजयकृष्ण गोस्वामी, ईश्वरचंद्र, विद्यासागर, बंकिमचंद्र चटर्जी, अश्विनी कुमार दत थे।

 

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