राजा भगीरथ
राजा भगीरथ के नाम सुनते ही हमें माँ गंगा का स्मरण होता है, कठोर तप करने के पश्चात राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाये थे, इनके पिता का नाम दिलीप था, इनका वंश इक्ष्वाकु था, इन्हें अपने 60 हजार पूर्वजो को श्राप मुक्त कराने के लिए यह तप करना पड़ा था। जिसका वर्णन हरवंश पुराण, महाभारत, भागवत, ब्रह्यवैवर्त पुराण एवं रामायण मेें मिलता है।
राजा सगर और साठ हजार पुत्र-
राजा सगर अयोध्या के राजा थे, इनकी दो रानिया थी, इनकी कोई संन्तान नही थी, जिससे इन्होंने तप किया तथा ऋषि भुगृ को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किया। तथा ऋषि-भुगु ने उन्हें बताया कि उनकी एक रानी से एक पुत्र जो कि उसके वंश को आगे बढायेगा, तथा दूसरी रानी से 60 हजार पुत्र होगे, दोनो रानियो को आपस में तय करना होगा कि कौन कितने पुत्र की चाह रखती हैं इस प्रकार रानी सुमति ने 60 हजार पुत्रो की कामना की एवं रानी केशिनी ने एक पुत्र की जो वंश को आगे बढायेगा। रानी सुमति जो राजा अरिष्टनेमी की पुत्री एवं रानी केशिनी जो राजा विदर्भ की पुत्री थी। को संन्तानो की प्राप्ति हुयी। कुछ समय बितने के उपरान्त ऋषि-भुगु के वरदान के अनुसार रानी केशिनी ने असमज्ज नाम के पुत्र कोे जन्म दिया एवं रानी सुमति के गर्भ में एक तुम्बी उत्पन्न हुयी जिससे 60 हजार पुत्रो की उत्पत्ती हुयी।
इस प्रकार समय के साथ-साथ सभी राजकुमार बडे़ हुये, और राजा सगर ने हिमालय एवं विन्घाचल के बिच एक विशाल यज्ञ मण्डल का निर्माण किया तत्पश्चात् अश्वमेघ यज्ञ कराने के लिए घोडा छोडा कुछ समय पश्चात जब इन्द्र को पता चलता है कि राजा सगर अश्वमेघ यज्ञ कर रहे है, तो उन्होंने अपना रूप बदलकर घोडे को कपिल मुनि के आश्रम में ले गये, जहां कपिल मुनि अपनी तपस्या में थे, इस प्रकार इन्द्र ने घोडा कपिल मुनि के आश्रम में छुपा दिया। जब राजा सगर को पता कि घोडा खो गया है उसने अपने 60 हजार पुत्रो को अश्वमेघ वाले घोडे को खोजने के लिए भेजा। सभी ने काफी खोजबीन की यहां तक धरती को खोदकर पाताल तक घोडा खोजा गया इसमें कई असंख्य जीव भी मारे गये। अन्तः उन्हें घोडा कपिल मुनि के आश्रम में मिला जहां कपिल मुनि अपने ध्यान साधना में थे, सगर के सभी 60 हजार पुत्रो ने सोचा कि घोडा कपिल मुनि ने चुराया है। उन्होंने कपिल मुनि का घोर अपमान एवं अशब्द वाक्य बोले जिससे कपिल मुनि की आँखे खुल गयी एवं उन्होनं श्राप देकर सभी को भस्म कर दिया। जब राजा सगर को काफी दिनो तक अपने पुत्रो की सूचना नही मिली तो वे दुखी हुये एवं उन्होने अपने पोत्र को अपने 60 हजार पुत्र एवं घोडे को खोजने को कहा इस प्रकार उनका पोत्र अंशुमान खोज में निकल पड़ा लेकिन काफी समय तक कुछ पता न चला उनकी नजर गरूड पर पडी जो कि सगर के 60 हजार के मामा थे उनसे पुछने पर उन्होंने बताया की इन्द्र ने घोडा कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया था, एवं जब सगर के 60 हजार पुत्र यहां पहुचे तो उन्हे लगा कि कपिल मुनी ने उनका घोडा चुराया है, सभी ने कपिल मुनि को अपमानित किया जिससे कपिल मुनि ने क्रोध में आकर सभी को श्राप देकर भस्म कर दिया। इस प्रकार गरूड ने अंशुमान को कहा की वह घोडे को ले जाय ताकि उसका पितामह यज्ञ पूरा कर सके।
अंशुमान की वापसी -
जब अंशुमान घोडे के साथ अपने पितामह के सामने गया और पूरा हाल बताया तो वे निराश हो गये। तथा उन्होेने अपने साठ हजार पुत्रो के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की सोची लेकिन वे सफल नही हो पाये। अंशुमान का पुत्र दिलिप जब बडा हुआ तो अंशुमान ने राज्य का भार दिलिप को सौप कर गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तप करने लगे। कुछ समय पश्चात इनका भी देहान्त हो गया। यही क्रम चलता रहा राजा दिलिप ने भी राज्य का भार भगीरथी को सौप दिया एवं गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तप करने चले गये ताकि उनके पित्रो को श्राप से मुक्ति मिल पाये लेकिन कुछ समय पश्चात वे भी स्वर्ग चले गये। इस प्रकार राजा भगीरथ की कोई संन्तान नही थी उन्होने राज्य का कार्यभार मंत्रियों को सौप कर तप के लिए निकल गये
भगवान ब्राह्य द्वारा प्राप्त वरदान -
भगवान ब्राह्य द्वारा प्राप्त वरदान -
राजा भगीरथ ने घोर तप किया तथा भगवान बा्ह्य को प्रसन्न किया भगवान बा्ह्य ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा राजा भगीरथ बोले वे गंगा के जल से अपने पित्रो को श्राप मुक्त करना चाहते है। तथा वे संन्तान प्राप्ति चाहते है ताकि वे अपने वंश को आगे चला पाये। भगवान बा्ह्य ने कहा पहला वरदान संन्तान की प्राप्ति तो शिघ्र हो जायेगी, लेकिन यदि गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुयी तो उसके वेग कौन संभालेगा गंगा के वेग को रोकने में केवल महादेव ही सश्रम है। तुम्हे महादेव को प्रसन्न करना चाहिए।
भगीरथ द्वारा भगवान शिव की तपस्या -
इस प्रकार भगीरथ ने एक पांव पर खडे़ होकर काफी लम्बे समय तक कठोर तप किया एवं भगवान शिव ने प्रसन्न होकर भागीरथ की मनोकामना पूर्ण की, गंगा को अपने सिर में धारण करके गंगा के वेग को अपनी जटाओ बाधा एवं धारा के रूप में गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुयी।
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