स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र था, इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कि कोलकत्ता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे, एवं इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, ये धार्मिक प्रवृति की थी, इनका जन्म कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में सन् 1883 में हुआ। ये रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य थे, ये वेदान्त के आध्यात्कि गुरू थे, यद्यपि ये हिमालय जाकर तप करना चाहते थे, लेकिन इनके गुरू रामकृष्ण परमहंस ने इनके कहा कि तुम हिमालय जाकर समाधी में रहो और तुम्हारे आस-पास के लोग भुख से तड़प रहे है, चारो तरफ अज्ञान का अंधकार फैला हुआ है, क्या तुम्हारी आत्मा यह स्वीकार करेगी। जिससे स्वामी विवेकानन्द जी का विचार बदल गया और वे मानव जाति की सेवा में जुड़ गये।
स्वामी विवेकानन्द का कथन“उठो जागो और तब तक नही रूको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाय”
स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र था, इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कि कोलकत्ता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे, एवं इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, ये धार्मिक प्रवृति की थी, इनका जन्म कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में सन् 1883 में हुआ। ये रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य थे, ये वेदान्त के आध्यात्कि गुरू थे, यद्यपि ये हिमालय जाकर तप करना चाहते थे, लेकिन इनके गुरू रामकृष्ण परमहंस ने इनके कहा कि तुम हिमालय जाकर समाधी में रहो और तुम्हारे आस-पास के लोग भुख से तड़प रहे है, चारो तरफ अज्ञान का अंधकार फैला हुआ है, क्या तुम्हारी आत्मा यह स्वीकार करेगी। जिससे स्वामी विवेकानन्द जी का विचार बदल गया और वे मानव जाति की सेवा में जुड़ गये।
स्वामी विवेकानन्द का कथन“उठो जागो और तब तक नही रूको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाय”
स्वामी विवेकानन्द की शिक्षा-आठ साल की उम्र में नरेन्द्र (स्वामी विवेकानन्द) ने ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटिन संस्थान में प्रवेश लिया। 1884 में इन्होने कला स्तानक की डिग्री पूरी की इसके अलावा ये दर्शन, इतिहास, धर्म, कला, सामाजिक विज्ञान और साहित्य सहित कई विषयो का अध्ययन किया ।
स्वामी विवेकानन्द जी की यात्राये- मात्र 25 वर्ष की आयु में इन्होेंने संन्यासियों की भाँती गेरूवे वस्त्र धारण करके पूरे भारतवर्ष की यात्रा पैदल तय की इसके अलावा इन्होंने कई देशो में जैसे जापान, कनाडा, चीन अमेरिका आदि देशो में यात्रा की अमेरिका (शिकांगो) में इन्होंने शून्य पर भाषण दिया, यहां के लोग भारतवासियो को हीन भावना की दृष्टि से देखते थे, वे नही चाहते थे कि स्वामी विवेकानन्द यहां भाषण दे, लेकिन जब स्वामी विवेकानन्द ने अपने भाषण प्रारम्भ किये तो वहां के सभी लोग आश्चर्य चकित रह गये, एवं उनके भाषण सुनने के लिए मंत्र मुग्ध हो गये, वहां के कई विद्वान लोग उनसे जुड़ गये यहां उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
गुरू के प्रति उनका सम्मान- स्वामी विवेकानन्द के गुरू रामकृष्ण परमहंस थे, इनका अपने गुरू के प्रति अति सम्मान था, ये किसी से भी इनकी बुराई नही सुन सकते थे, उन्होनें अपने गुरू से सीखा की मानव जाति की सेवा द्वारा ही परमात्मा की सेवा की जा सकती है, सारे जीवों में परमात्मा विद्यमान है, रामकृष्ण के अंतिम दिनों में इन्होंने ही उनकी पूरी देखभाल की ये हिमालय में समाधिस्थ होने के बजाय अपने गुरू के कहने पर पर मानव जाति की सेवा में लग गये। तथा अपने ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलाया, एवं रामकृष्ण मिशन की स्थापना की ।
गुरू के प्रति उनका सम्मान- स्वामी विवेकानन्द के गुरू रामकृष्ण परमहंस थे, इनका अपने गुरू के प्रति अति सम्मान था, ये किसी से भी इनकी बुराई नही सुन सकते थे, उन्होनें अपने गुरू से सीखा की मानव जाति की सेवा द्वारा ही परमात्मा की सेवा की जा सकती है, सारे जीवों में परमात्मा विद्यमान है, रामकृष्ण के अंतिम दिनों में इन्होंने ही उनकी पूरी देखभाल की ये हिमालय में समाधिस्थ होने के बजाय अपने गुरू के कहने पर पर मानव जाति की सेवा में लग गये। तथा अपने ज्ञान का प्रकाश चारों ओर फैलाया, एवं रामकृष्ण मिशन की स्थापना की ।
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