नालंदा विश्वविद्यालय तक्षशिला भारतवर्ष में प्राचीन समय से ही शिक्षा के लिए महत्पूर्ण स्थान रहा है।


भारतवर्ष में प्राचीन समय से ही शिक्षा के लिए महत्पूर्ण स्थानो का चुनाव किया जाता है। गुरू शिष्य परम्परा का यह देश रहा है इसी में एक है, नालंदा विश्व विद्ययालय जो वर्तमान मेें  बिहार राज्य पटना में स्थित है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासन कुमार गुप्त द्वारा लगभग 450 ई0 से 470 ई0 में किया गया, ये शिक्षण संस्थान न केवल भारत में प्रसिद्व था अपितु विश्व में इसका द्वितीय स्थान रहा है, इसमें न केवल भारत वर्ष के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते आते थे अपितु विदेशो से भी विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थे, यहां सभी प्रकार की शिक्षाये एवं सुविधाये विद्यार्थियो को दी जाती थी, जो एक विद्यार्थी के लिए आवश्यक है।

नालंदा विश्वविद्यालय के ऐतिहासिक महत्व


विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए शिक्षण की व्यवस्था– आचार्य विषयो को पढ़ाने के लिए अलग-अलग आचार्य होते थे, जिनमें आचार्य का प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान होता था, आर्चायों द्वारा पाठशाला में मुख्यतः मौखिक व्याखान, पुस्तको को पढ़ाना एवं विद्यार्थियों के बिच शास्तार्थ एवं समस्याओं का निदान किया जाता था।



नालंदा विश्वविद्यालय कैसा था
 

हाॅस्टल की सुविधा से भरपूर यह विश्वविद्यालय—इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के रहने के लिए हाॅस्टल सुविधा थी जिस भी छात्र का चयन इस विश्वविद्यालय में होता था उसे हाॅस्टल में रहना होता था, यद्यपि इस विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना कठिन था, यहां विद्यार्थियों के रहने के लिए लगभग 300 कमरे थे। जिसके एक कमरे में एक या दो शिष्य रहने की व्यवस्था थी।
 
लाइब्रेरी की सुविधाये - विद्यार्थियो को अपने पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ने के लिए अनेको पुस्तके इस लाइब्रेरी में थी। जिसके अध्ययन से वे अपने ज्ञान को बढ़ा सके।

इस विश्वविद्यालय का संसार में द्वितीय स्थान था। कई शासको द्वारा इस विश्वविद्यालय को क्षतिग्रस्त किया गया जिससे कई पुस्तक स्वाहा हो गये यदि ये पुस्तक आज होती तो लोगो को हर प्रकार ज्ञान यहां मिल सकता था।

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