वट का वृक्ष

वृक्षो के बिना प्राणी मात्र का जीवन असंभव है, चाहे वह फल के रूप में हो या प्राणवायु के रूप में, या घरेलु साम्रगी के उपयोग में इन वृक्षो में से एक वृक्ष है वट का वृक्ष जो हिन्दु संस्कृति में पुज्य व पवित्र माना जाता है
इस वृक्ष को अक्षयवट के नाम से भी जाना जाता है। वृक्ष से जटा की तरह कई शाखायें निकलती है। जो हवा में में हिलती डुलती रहती है। माना जाता है कि वट वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति को सौभाग्य एवं संतान सुख की प्राप्ति होती है।

 ऋषियो एवं तपस्वी द्वारा तप के लिए वट वृक्ष का चुनाव- ऋषियों अपनी तपस्या के लिए इसी वृक्ष का चुनाव करते है। यहां तक कि भगवान बुद्ध को भी वट वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
पौराणिक कथा- सावित्री जो कि एक पतिव्रता स्त्री थी, उसका पति सत्यवान जो कि एक लकडहारा था उसकी आयु पूरी हो चुकी थी, जब मृत्यु को प्राप्त होता है तो यमराज सत्यवान के प्राण लेने पहुचते है लेकिन सावित्री यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगती है। वह तब तक यमराज का पिछा नही छोड़ती जब तक की उसे उसके पति के प्राण वापस नही मिल जाते। आखिर यमराज को विवश होकर उसके प्राण वापस करने ही होते है। 
वट के वृक्ष के नीचे ही सावित्री के पति के शरीर को जंगली जानवरो तथा अन्य चीजो से मिलीे सुरक्षा मिली जिस कारण सावित्री व्रत रखा जाता है। इसी कारण सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा की जाती है, यह व्रत काफी महत्वपूण माना जाता है। ऐसी मान्ययता है कि सावित्री की भाॅंती स्त्रियां अपने पती की लम्बी आयु के लिए यह व्रत रखती है। यह व्रत  जयेष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है।

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