पंच केदार उत्तराखंड में स्थित है। कहाँ गया है कि भगवान कण-कण मेें व्यापत है। यदि श्रद्धा से उनका स्मरण किया जाय तो वह हर जगह है। भगवान भी प्रेम के भुखे है। ये पाँच केदार केदारनाथ, तुंगनाथ, कल्पेश्वर, एवं रुद्रनाथ है। पाँच केदारो में भगवान शिव के विभिन्न भागों का दर्शन किया जाता है। उत्तराखण्ड को देव भूमि कहा जाता है। केदारनाथ में भगवान शिव के पृष्ठभाग, तुंगनाथ में भुजाओं मदमहेश्वर में नाभि एवं कल्पेश्वर में भगवान शिव की पूजा की जाती है।
पंच केदार कथा— जब महाभारत का युद्ध हो रहा था सभी कौरवो को पांडवो द्वारा मारा गया। इस प्रकार पांडव परेशान थे कि उन्होंने अपने भाइयों की हत्या की है। इस पाप से वे कैसे मुक्ति पा सकते है। सभी पांडव महर्षि व्यास के पास जाते है। और उनसे इस घोर पाप से मुक्ति पाने की याचना करते है। जिस पर महर्षि व्यास उन्हें कहते है। कि भगवान शिव ही उन्हें इस पाप से मुक्ति दिला सकते है। क्योंकि वे अपने भाईयों और गुरुओं के मारने के बाद ब्रहृम हत्या के दोषी बन गये है।
पंच केदार कथा— जब महाभारत का युद्ध हो रहा था सभी कौरवो को पांडवो द्वारा मारा गया। इस प्रकार पांडव परेशान थे कि उन्होंने अपने भाइयों की हत्या की है। इस पाप से वे कैसे मुक्ति पा सकते है। सभी पांडव महर्षि व्यास के पास जाते है। और उनसे इस घोर पाप से मुक्ति पाने की याचना करते है। जिस पर महर्षि व्यास उन्हें कहते है। कि भगवान शिव ही उन्हें इस पाप से मुक्ति दिला सकते है। क्योंकि वे अपने भाईयों और गुरुओं के मारने के बाद ब्रहृम हत्या के दोषी बन गये है।
इस प्रकार
वे महर्षि की सलाह पर पांडव ब्रहृम हत्या से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव
के पास जाते है। लेकिन भगवान शिव इस महाभारत के युद्ध से खुश न होने के
कारण वे वहाँ से अदृश्य होकर केदारनाथ आ गए और बैल का रूप रखकर बैले के
झुण्ड में शामिल हो जाते है। जिससे उन्हें पांडव पहचान न पाए लेकिन पांडव
कहाँ मानने वाले थे। वे भगवान शिव से मिलने इसी स्थान पर पहुँच जाते है।
पांडवों में भीम ने विशाल रूप धारण करके भीम का रूप रखकर सभी बैल डर से
भागने लगे भगवान शिव जो बैल रूप में ना भागे तो भीम समझ गए कि यही भगवान
शिव है। जैसे ही भीम बैल ने बैल को पकड़पस चाहा तो बैल अदृश्य हो गया भीम के
हाथ सिर्फ बैल का पृष्ठ भाग ही आया इस प्रकार भगवान शिव पांडवों की भक्ति
देखकर प्रसन्न हुए एवं उन्हें ब्रहृम हत्या से मुक्त किया।
आइए जानते है ये पंच केदार के बारे में—
आइए जानते है ये पंच केदार के बारे में—
केदार नाथ:
रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह स्थान पर्वतो की गोद में बसा है। केदार नाथ मंदिर के बाहर नन्दी महराज की 66 फीट ऊँची मूर्ति है। यहाँ पर कई पवित्र कुण्डो के दर्शन भक्तो द्वारा किऐ जाते है। यह मंदिर ग्रेनाइट शिलाखण्डों का बना हुआ है।
मदमहेश्वर:
यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। मदमहेश्वर में भगवान शिव के नाभि भाग की पूजा की जाती है। दूर-दूर से श्रद्धालु गण यहाँ पहुँचते है। मंदिर के आस-पास तरह-तरह के बह्मकमल के पुष्प खिलते है। यह गुप्तकाशी से लगभग 32 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है।
कल्पेश्वर:
कल्पेश्वर चमोली जिले में उर्गम गाँव में स्थित है। यहाँ पर भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है।
रुद्रनाथ:यह स्थान चमोली जिले में स्थित है। यहाँ भगवान शिव की मुख (रौद्र रूप) की पूजा की जाती है। यहाँ चारो ओर पर्वतो जो बर्फ से ढकी रहती है। और विभिन्न प्रकार के पुष्प को देखा जा सकता है। यहाँ द्रोणगिरी, चैखम्बा, नन्दादेवी आदि पर्वत दिखाई देते है।
मदमहेश्वर:
यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। मदमहेश्वर में भगवान शिव के नाभि भाग की पूजा की जाती है। दूर-दूर से श्रद्धालु गण यहाँ पहुँचते है। मंदिर के आस-पास तरह-तरह के बह्मकमल के पुष्प खिलते है। यह गुप्तकाशी से लगभग 32 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है।
कल्पेश्वर:
कल्पेश्वर चमोली जिले में उर्गम गाँव में स्थित है। यहाँ पर भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है।
रुद्रनाथ:यह स्थान चमोली जिले में स्थित है। यहाँ भगवान शिव की मुख (रौद्र रूप) की पूजा की जाती है। यहाँ चारो ओर पर्वतो जो बर्फ से ढकी रहती है। और विभिन्न प्रकार के पुष्प को देखा जा सकता है। यहाँ द्रोणगिरी, चैखम्बा, नन्दादेवी आदि पर्वत दिखाई देते है।
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तुंगनाथ |
तुंगनाथ पंच केदार में से एक है। यह मंदिर पंचकेदारों मे से एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यहाँ भगवान शिव के भुजाओं की पूजा की जाती है। यह मंदिर चोपता से 3 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। चोपता से आगे प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लिया जा सकता है। मार्ग में घना बांस बुरांश का जंगल है। इस मंदिर में श्रद्धालु मुख्तः मई से नवंबर माह में दर्शन करने आते है। यहाँ जनवरी से फरवरी माह में बर्फ का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। मंदिर समुद्र से 3680 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ पहुचने के लिए ऋषिकेश से गोपेश्वर जो 212 कि0मी0 तथा गोपेश्वर से चोपता लगभग 40 कि0मी की पर स्थित है।
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