माता वैष्णो देवी की यात्रा

माता वैष्णो देवी की यात्रा के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु जाते है। माता वैष्णु देवी त्रिकुटा की पहाड़ियो में निवास करती है। यद्यपि यहाँ की यात्रा कठिन है। माता के दरबार तक पहुँचने के लिए कुछ दूरी पैदल तय करनी होती है। लेकिन मन में माता वैष्णुदेवी के प्रति अपार श्रद्धा होने से ये कठिन यात्रा जय माता दी बोलते हुए और भी सरल हो जाती है। माता वैष्णु देवी का दरबार हिंदू धर्म में अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। जहाँ माता के दर्शन के लिए देश-विदेश से श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।



कटरा से माता वैष्णो देवी की यात्रा— जब कटरा से यात्रा प्रारम्भ करते है। तो रास्ते में बाणगंगा, चारपादुका, इंद्रप्रस्थ, अर्धकुवारी, गर्भजून, हिमकोटी और साझी छत आदि अनके स्थान देखने को मिलते है। जम्मू कटरा से 14 कि0मी0 की दूरी पर माता वैष्णु देवी का मंदिर है। यहाँ से 3 कि0मी0 की दूरी पर भैरवनाथ घाटी है।


कई लोग जो आसानी से पैदल यात्रा तय नही कर पाते है। उनके लिए यहाँ घोड़ा, खच्चर, पालकी आदि की व्यवस्था भी यहाँ है। वे भी आसानी से माता के दर्शन कर सकते है। पैदल यात्रा करते समय यदि आप थकान का अनुभव कर रहे है। तो रास्तो में विश्राम के लिए शेड्स, जलपान तथा खाने की सुविधा उपलब्ध रहती है। इसके अलावा बृद्धजनो एवं दिव्यांगो के लिए अर्धकुमारी से बैटरी कार सेवा भी यहाँ उपलब्ध है।

माता वैष्णो देवी और श्रीधर पंडित की कहानी— श्रीधर नाम का एक पंडित जो माता वैष्णुदेवी का परम भक्त था। कटरा से 2 कि0मी0 दूर हंसली गांव में रहता था। माता उसे दिव्य कन्या के रूप में दर्शन देती है। और कहती है। कि वह अपने घर पर एक भण्डारा का आयोजन करे। पंडित श्रीधर ने अपने निकट के सभी लोगो को भण्डारा में बुलाया साथ ही भैरवनाथ को भी आमंत्रित किया। लोग समझ नही पा रहे थे कि पंडित श्रीधर ने भण्डारे में सभी लोगोां को आमंत्रित कर दिया लेकिन इतनी छोटी जगह में इतने सारे लोग कैसे भण्डारा कर पायेगे। 

ततपश्चात् भण्डारे में सभी लोग आ पहुँते है। पंडित श्रीधर व उसकी पत्नी माता से विनती करते है कि वह उस कन्या को भेजे। श्रीधर पंडित व उसकी पत्नी परेशान हो जाते है। तभी वही दिव्य कन्या वहाँ पहुँचती है। भण्डारे के भोजन की सभी व्यवस्थाये कर देती है। भण्डारे में सभी को भोजन कराया जाता है। लेकिन भैरवनाथ माता से मांस-मंदिरा तामसिक भोजन की माँग करता है। जिससे दिव्य कन्या उसे कहती है कि दूसरे की हत्या कर अपना भोजन करना पाप है, भैरवनाथ दिव्य कन्या को पकड़ना चाहता है। 

वह दिव्य कन्या अदृश्य हो जाती है। भैरवनाथ उस दिव्य कन्या का पिछा करते हुये त्रिकुटा की पहाडियों में पहुँचा अन्तः दिव्य कन्या ने महाकाली का रूप लिया तथा भैरवनाथ का सिर काट दिया। जिससे भैरव नाथ माता से विनती करता है। तथा माता उसे कहती है। कि मेरे दर्शन के बाद लोग इस घाटी पर आयेगे। (जिसे भैरवनाथ घाटी के नाम से जाना जाता है।) तभी उनकी यात्रा सफल मानी जायेगी। इस प्रकार माता इस स्थान पर पिण्डी रूप में विराजमान हो गयी।

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