साधारण कमल का पुष्प तालाबों के किनारे खिलता है परन्तु ब्रह्म कमल तालाबों में न खिलकर ऊँचे पर्वतो में दुर्गम स्थानों में पाया जाने वाला पुष्प है। ब्रह्मकमल की ऊँचाई लगभग 70-80 से0मी0 तक होती है। इस पुष्प के बारे में वेदो, महाभारत तथा अन्य ग्रंथो में उल्लेख मिलता है। इसे देवताओं का पुष्प भी कहते है। इस पुष्प की पत्तियों को छूने से कई घंटो तक यह अपनी खुशबु बिखेरता है। फूल का जीवन लगभग 5 से 6 माह का होता है।
ब्रह्मकमल के बारे में जानकारी—
ब्रह्मकमल का वनस्पति नाम ‘सोसूरिया अबवेलेटा’ है, यह ऐसटेरसी कुल का पादप है। यह पुष्प पूरे साल भर पाया जाता है। इसके फूल बैगनी रंग के होते है। यह उत्तराखण्ड राज्य का राज्य पुष्प है। उत्तराखण्ड में नन्दा अष्टमी के पर्व पर इस फूल को तोड़ा जाता है, तथा माँ नन्दा को पुष्प चढ़ाया जाता है। फिर इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मान्यता है। कि माँ नन्दा को यह पुष्प काफी प्रिय है।ब्रह्मकमल का नाम—
उत्तराखण्ड में इसे ब्रह्मकमल, कश्मीर में गलगल हिमाचल में दूधाफूल, श्रीलंका में कदुफूल नाम से जाना जाता है।
ब्रह्मकमल जुलाई से सितम्बर के महिने में खिलता है। इस समय इसके चारों ओर का वातावरण सुगंधित रहता है। उत्तराखण्ड में यह पुष्प मुख्यतः केदारनाथ, पिण्डारी ग्लेशियर, फूलो की घाटी तथा इसके अलावा यह पुष्प कश्मीर, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, मध्य नेपाल में भी ऊँचे पर्वतो-चट्टानो वाले स्थानों में खिलता है।
ब्रह्मकमल की प्रजाति—
पूरे विश्व भर में इसकी लगभग 410 जातियाँ पायी जाती है। बह्मकमल की कुछ प्रजातियाँ सोसूरिया लप्पा, सोसूरिया ग्रामिनिफोलिया आदि है।ब्रह्मकमल का महत्व—
- पूजा-पाठ में इस पुष्प को भगवान को चढ़ाया जाता है।
- इस पुष्प की जड़ो में औषधीय गुण होते है।
- इस पुष्प को कपड़ो के अन्दर रख देने से कपडे़ में खुशबु आती है। जिससे कपड़ो में कीडे़ भी नही लगते है।
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