फिडेलहेड फ़र्न लिंगड़ी (लिमुडा)

लिंगड़ी (लिमुडा) पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला पहाड़ी शाक है। जिसे रोपण या उगाने की आवश्यकता नही होती ये नमी तथा छायादार वाले स्थाने में स्वतः ही उग जाते है। पहाड़ी क्षेत्रों के लोग इसकी सब्जी को बड़े चाव से बनाते है। इसे आलू के साथ मिक्स करके भी तैयार किया जाता है।

लिंगड़ी (लिमुडा) एक गहरे हरे रंग का डंठल के समान होता है। जिसका उपरी शिरा कुंडलीकार घुघरिला आकृति का होता है। हरे डंठल के चारों ओर भूरे रंग के बारिक बाले- की आकृति से ढका रहता है। यह फर्न परिवार का पौधा है। जिसका वैज्ञानिक नाम— (Matteuccia Struthiopteris) हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में इसका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। ये पर्णपाती पौधा है, जो मुख्यतः नमी एवं छायादार वाले स्थानों में पाया जाता है। इसकी ऊँचाई भूमि से लगभग 10-12 से0मी0 तक होती है। स्थानीय भाषा में इसे लुनग्रु तथा कई पहाड़ी क्षेत्रों में लिमुड के नाम से भी जाना जाता है। यह बिना फूल वाला पौधा है।

यह मुख्यतः उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश (उत्तरी भारत) एंव नेपाल के पहाड़ियों वाले स्थानों में पाया जाता है। यह मुख्यः रूप से जमीन में मई से जून तक ही पाया जाता है। बसंत ऋतु के आगमन पर कई फर्न फट जाते है तथा बडे़ फर्न का पौधा बन जाता है। इसलिए इन्हें इससे पहले ही उपयोग में ले लेना चाहिए। 

लिंगड़ी (लिमुडा) को जमीन से तोड़कर इसे कपडे़ की सहायता से इसके भूसी जो हल्के भूरे रंग की लुनगुरु के चारों ओर होती है, साफ करते है। फिर इसकी बाहर की झिल्ली को अलग कर लेते है। फिर हल्के गरम पानी में घोकर इसकी अपने पसंदा अनुसार सब्जी तैयार की जाती है।

लाभ—
इसमें कई प्रकार के विटामिन्स पाये जाते है। जो शरीर के पोषण के लिए आवश्यक होते है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट विटामिन ए ओमेगा-3 ओमेगा-6 आदि आवश्यक तत्व पाये जाते है। यह सर्दी, खांसी और वायरल आदि में लाभकारी है।

हानियाँ—
इसका उपयोग करने से पहले इसकी पहचान होनी जरूरी होती है। यह पौधा फर्न जाति का पौधा है। इसकी कई अन्य जातियाँ जंगलो या जहाँ ये उगते है। पायी जाती है। इनमें से कुछ जातियाँ स्वास्थ के लिए हानिकारक होती है। जिसका उपयोग करने से स्वास्थ को हानि पहुँच सकती है। इसलिए जब भी इस को प्रयोग करे अच्छी तरह से जाँच ले।

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