वायु का अर्थ हवा से है। शरीर के लिए हवा की आवश्यकता होती है। इसके बिना प्राणी मात्र का जीवन संम्भव नहीं है। यदि शरीर में वायु तत्व का संतुलन ठीक ढंग से नही होता है, तो शरीर में कई तरह के विकार उत्पन्न हो जाते है। शरीर में वायु तत्व संतुलित न हो तो हस्त वायु-मुद्रा का अभ्यास लाभदायक होता है।
वायु मुद्रा की विधि— इस मुद्रा में तर्जनी अंगूली तथा अंगूठे को उपयोग में लाया जाता है। सर्वप्रथम किसी आसन मैट या चटाई पर पदमासन या सिद्धासन में बैठते है। तर्जनी अंगूली को मोड़कर अंगूठे के जड़ भाग से स्पर्श कराते है, तथा अंगूठे से तर्जनी को दबाते है, और शेष तीन अंगुलियों मध्यमा, अनामिका, और कनिष्ठा को सीधा रखते है।
वायु मुद्रा से लाभ-
- इस मुद्रा से सभी प्रकार के वायु विकार दूर हो जाते है।
- शरीर के किसी भाग में जैसे हाथ, पैर कम्पन आदि विकार दूर हो जाते है।
- गर्दन में जकड़न या दर्द में भी यह मुद्रा लाभप्रद है।
- गैस, लकवा, वायु भूल, रेगन वायु में भी यह मुद्रा लाभप्रद है।
- हिचकी की समस्या भी इस मुद्रा से दूर हो जाती है।
- मन की चंचलता दूर होती है।
- कमर दर्द, घुटनो का दर्द आदि विकार इस मुद्रा से दूर हो जाते है।
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