भगवान शिव का नटराज मंदिर दक्षिण भारत के चिदम्बरम् में तमिलनाडु में स्थित है, जहाँ भगवान शिव नटराज के रूप में विराजमान है। नटराज की मूर्ति मुख्य रूप से कांस्य की बनी होती है। नटराज भगवान शिव का ही दूसरा नाम है। आज भी बडे़-बडे़ नृत्यकार अपना नृत्य प्रारम्भ करने से पहले भगवान शिव के नटराज रुप को नमन करने के बाद ही अपना नृत्य प्रारम्भ करते है। भगवान शिव ही नृत्य के सृजनकर्ता है। भगवान शिव के नृत्य का रूप तांडव भी है। जो मुख्य रूप से दो प्रकार के है, पहला रौद्र तांडव जिसमें क्रोध है, तथा दूसरा तांडव आनंद तांडव है। जो आनंद का प्रतीक है।
नटराज नृत्य में भगवान शिव के एक हाथ में डमरू है। जो प्रकृति के सजृन का प्रतीक है। दूसरे हाथ में अग्नि है। जो कि बुराई को नष्ट करने का प्रतीक है। उनके पंजों के नीचे दैत्य मुयालकन जो अज्ञान का प्रतीक है। उनका उठा हुआ हाथ अभयमुद्रा में है जो समस्त जीवों के उद्धार का प्रतीक है। उनके पीछे जो चक्र है, बह्माण्ड का प्रतीक है और उनका उठा हुआ पांव अर्पण का प्रतीक है।
नटराज नृत्य में भगवान शिव के एक हाथ में डमरू है। जो प्रकृति के सजृन का प्रतीक है। दूसरे हाथ में अग्नि है। जो कि बुराई को नष्ट करने का प्रतीक है। उनके पंजों के नीचे दैत्य मुयालकन जो अज्ञान का प्रतीक है। उनका उठा हुआ हाथ अभयमुद्रा में है जो समस्त जीवों के उद्धार का प्रतीक है। उनके पीछे जो चक्र है, बह्माण्ड का प्रतीक है और उनका उठा हुआ पांव अर्पण का प्रतीक है।
नटराज मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में चोल राजाओं के शासनकाल में हुआ था। मंदिर का निर्माण सुन्दर ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है। नटराज मंदिर कई घेरो में स्थित है। मंदिर में नौ द्वार है, पहले घेरे में छोटे-छोटे गोपुर है, दूसरे घेरे में गोपुर नौ मंजिला के है, इन गोपुर में अनेक नृत्य मुद्राओं की मूर्तिया है।
प्राचीन कथा-
एक समय ऋषियों को अपनी शक्ति पे अभिमान हो गया वे अपने को ही सर्व समझने लगे, तब भगवान शिव एक भिक्षुक का रूप रखते है, और थिलाई के जंगलों में जहाँ ऋषि रहा करते थे वहाँ भ्रमण करते है, भिक्षुक इतना मोहक होता है। ऋषियों की पत्नियां मोहित हो जाती है। तब ऋषि लोग अपनी पत्नियों इस प्रकार मोहित न देख पाये और क्रोधित हो गये तथा अपनी शक्तियों से सर्पो को उत्पन्न कर दिया भिक्षुक ने उन सभी सर्पो को उठाया और अपने हाथ में, गले में, तथा कमर में धारण कर दिया, जब ऋषियों ने यह देखा तो वे और अधिक क्रोधित हो गये, उन्होंने अपने मंत्रो से एक बाघ उत्पन्न किया, भिक्षुक ने उस बाघ की खाल को निकाला ओर अपनी कमर में बाँध दिया।
ऋषिगण फिर भी भिक्षुक के रूप में भगवान शिव को न पहचान पाये। और उन्होंने अपने मन्त्रों से एक दैत्य उत्पन्न कर दिया भगवान शिव भिश्रुक के रूप में उस दैत्य मुयालकन की पीठ पर खडे़ हो गये, और आंनद नृत्य करते हुए अपने रूप में प्रकट हुए इस प्रकार भगवान शिव ने भिक्षुक का रूप रख ऋषियों का घमंड तोड़ा।
ऋषिगण फिर भी भिक्षुक के रूप में भगवान शिव को न पहचान पाये। और उन्होंने अपने मन्त्रों से एक दैत्य उत्पन्न कर दिया भगवान शिव भिश्रुक के रूप में उस दैत्य मुयालकन की पीठ पर खडे़ हो गये, और आंनद नृत्य करते हुए अपने रूप में प्रकट हुए इस प्रकार भगवान शिव ने भिक्षुक का रूप रख ऋषियों का घमंड तोड़ा।
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