एक पहाड़ी फल ऐसा भी है, जिसके पकने का इन्तजार न केवल लोगों को रहता है, अपितु पक्षियों को भी इस फल के पकने का इन्तजार रहता है। जब यह फल पकता है, तो एक चिड़िया अपनी मधूर आवाज़ में सभी को बताती है, कि काफल पक चुके है, जिसके मधुर स्वर होते है, "काफल पाको मै नि चाखौं" इस ध्वनी को सुनने के बाद सभी को पता लग जाता है, कि काफल पक गये है।
काफल पहाड़ी क्षेत्रों का एक स्वादिष्ट फल है, जिसका स्वाद हल्का-खट्टा मिठा होता है, इनके फल पकने से पहले हरे रंग के होते है, लेकिन पकने के बाद इनका रंग लाल तथा पूर्ण पकने पर हल्का काला हो जाता है। इसका पेड़ मुख्यरूप से हिमालयी क्षेत्रों जैसे, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, नेपाल और उत्तर पूर्वी- राज्य मेद्यालय में पाया जाता है। काफल को बाॅक्स मर्टल, बेबेरी आदि नाम से भी जाना जाता है। काफल का वैज्ञानिक नाम मारिका एस्कुलेंटा है। काफल का पेड़ 4000 फीट से 6000 फीट की ऊँचाई वाले क्षेत्रो में पाया जाता है।
आमदानी का एक अच्छा जरिया
कई लोगो के लिए ये फल आमदानी का एक अच्छा स्रोत है। इन फलों को पेड़ों से तोड़कर टोकरी में इक्ठ्ठा कर देते है। तथा मार्किट में इसे बेच देते है। जिससे एक अच्छी रकम आ जाती है।
काफल के फायदे
कई लोगो के लिए ये फल आमदानी का एक अच्छा स्रोत है। इन फलों को पेड़ों से तोड़कर टोकरी में इक्ठ्ठा कर देते है। तथा मार्किट में इसे बेच देते है। जिससे एक अच्छी रकम आ जाती है।
काफल के फायदे
- इस फल का सेवन करने से पेट से संबंधित कई विकार दूर हो जाते है, जैसे कब्ज, एसिडिटी आदि।
- इसके फलो से मोमबत्तियां, साबुन, नेल पाॅलिश आदि बनाया जाता है।
- काफल के पेड़ की छाल से प्राप्त सार को दालचिनी एवं अदरक के साथ मिलाकर सेवन करने से बुखार फेफड़ो की बिमारी, पेचिस आदि विकारो में लाभ मिलता है।
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