साई बाबा भारत के आध्यात्मिक संत होने साथ-साथ सूफी संत भी थें, इन्हें हिन्दु और मुस्लिम दोनों अपने-अपने ढंग से याद करते है। लोगों की इनके प्रति काफी श्रद्धा एवं विश्वास है, न केवल भारत वर्ष से अपितु विदेशों में भी इनके अनेकों भक्त है। जो समय-समय शिरडी के सांई के दर्शन करने लिए के शिरडी जाते रहते है। सांई को चाहने वाले भक्त की हमेशा एक चाह तो जरूर रहती है, कि एक बार वह शिरड़ी जाए और बाबा के दर्शन करे।
शिरडी के साईं बाबा का जन्म कब हुआ था, और कहाँ हुआ। इसके बारे में आजतक कुछ भी पता नही है। कुछ लोगों का मानना है कि इनका जन्म एक ब्राहृाण परिवार में हुआ था, बाबा का एक भक्त म्हालसापति जो बाबा के साथ मस्जिद तथा चावड़ी में शयन करता था, बाबा ने इन्हें बताया कि उनका जन्म एक ब्राहृाण परिवार में पाथरी गांव में हुआ था, इनके माता-पिता ने इनको बच्चपन में ही एक फकीर को सौप दिया था।
शिरडी के सांई बाबा के चमत्कार को उनके भक्तों ने जाना है
सांई बाबा नित्य दीया को जलाते थे, दीया के लिए तेल वे बनियों के पास जाकर लेते थे, एक दिन हमेशा की तरह सांई बाबा दीया जलाने के लिए बनियों से तेल मांग रहे थे, पर बनियों ने बाबा को तेल न देने की ठानी वे बाबा से बोले आज तेल नही हैं, सांई बाबा ने कुछ न बोलते हुए चुपचाप वहाँ से आ गये और नित्य की भाँती दीया में तेल की जगह पानी डाल दिया दीया जलने लगा। जब बनियों को यह पता चला तो वे बाबा के पास जाते है, और मांफी मांगते है। कि हमसे गलती हो गयी। साई बाबा ने उन्हें माफ कर दिया और फिर से कभी झूठ न बोलने को कहा।
एक बार एक स्त्री जिसका नाम लक्ष्मी था, उसकी काफी समय से कोई संन्तान नहीं हो रही थी, सांई बाबा के पास गयी और अपने दुखः को बताया सांई बाबा ने थोड़ी से वहुती निकाली और कहा कि इसे तुम भी खा लेना और अपने पति को भी खला देना कुछ समय पश्चात् उसने गर्भ धारण किया। इससे वह बहुत प्रसन्न थी और सांई बाबा के नाम का गुणगान करती रहती थी, उसके विरोधियों ने उसके गर्भ को नष्ट करना चाहा, जब उसका रक्तस्राव रूका नही तो वह फिर सांई बाबा के पास गयी और सांई बाबा ने उसे फिर वहुती दी जिसे खाकर वह फिर से सही हो गयी।
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