प्राचीन समय से ही ऋषि-मुनियों ने सृष्टि के कल्याण के लिए अपना योगदान दिया। तथा भक्ति एवं ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया ताकि लोगों को वास्तविक ज्ञान मिल पाये। सभी लोग ज्ञान प्राप्त कर आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो पाये आज भी प्राचीन संतो, योगियो, महात्माओं की कहानियां से प्रेरित होकर कई लोग उनका अनुसरण करते है। ऐसे ही 84 सिद्धों में से प्रसिद्ध सिद्ध गुरु गोरखनाथ जी की कथा है। जो सभी के लिए प्रेरणा स्वरूप है। महान योगी गुरु गोरखनाथ को शिव अवतार माना जाता है। गुरु गोरखनाथ तथा इनके गुरु मत्स्येंद्रनाथ जी को 84 सिद्धों में से प्रसिद्ध सिद्ध कहाँ जाता है।
गुरु गोरखनाथ का जन्म से जुड़ी हुयी कहानी
गुरु गोरखनाथ का जन्म किसी माता या स्त्री के गर्भ से नही हुआ ये एक अवतारी पुरूष थे। मत्स्येंद्रनाथ जी एक दिन भिक्षा के लिए एक गांव में पहुँचे एक घर के सामने से उन्होनें आवाज लगाई एक स्त्री अपने घर से बाहर आयी और मत्स्येंद्रनाथ जी को भिक्षा दी उस स्त्री ने कहा कि उसकी काफी समय से कोई संन्तान नहीं हुयी है। कृपा करके उसे आशीर्वाद प्रदान करे। मत्स्येंद्रनाथ जी ने थोड़ी सी भभूत निकाली और स्त्री से कहा कि इस भभूत का सेवन कर लेना तुम्हें एक श्रेष्ट पुत्र की प्राप्ति होगी जो धार्मिक होगा तथा जिसकी ख्याति पूरे संसार में होगी। मत्स्येंद्रनाथ जी के वहाँ से जाने के पश्चात् उस स्त्री ने अन्य स्त्रियों को इसके बारे में बताया उन स्त्रियों ने उसका उपहास उड़ाया जिससे उसने उस भभूत को गोबर की ढे़र में डाल दिया।
लगभग बारह वर्ष बाद मत्स्येंद्रनाथ जी उस गांव में दुबारा आये वे उस स्त्री के पास गये जिसे भभूत दिया था। स्त्री मत्स्येंद्रनाथ जी को देखकर डर गयी। नाथ जी ने कहाँ कि मैनें तुम्हे भभूत दिया था, अब तो बालक काफी बड़ा हो गया होगा। स्त्री ने डरे हुये स्वर में बताया कि उसने उस भभूत को लोक-लज्जा के मारे गोबर की ढेर में फेक दिया था, तब मत्स्येंद्रनाथ जी उस स्थान की ओर गये जहाँ उसने उस भभूत को फेका था, उन्होनें अपनी दिव्य शक्ति से उस बालक को गोबर की ढेर से बाहर निकाला जो एक ओजस्वी बालक था, जो अब 12 वर्ष का हो गया था, उस स्त्री को मत्स्येंद्रनाथ जी की बात न मानने पर बहुत अफसोस हुआ। उसने उस बालक को मत्स्येंद्रनाथ जी से मांगना चाहा लेकिन मत्स्येंद्रनाथ जी उस बालक को अपने साथ ले गये। यही बालक गुरु गोरखनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुआ जो मत्स्येंद्रनाथ जी का मानस पुत्र होने के साथ-साथ उनका शिष्य भी था।
गुरु गोरखनाथ जी के लिए गुरू का आदेश सर्वश्रेष्ट
एक दिन गुरु गोरखनाथ अपने गुरु मत्स्येंद्रनाथ जी के आदेशानुसार भिक्षा मांगने के लिए गये। जब उन्होनें एक व्यक्ति से भिक्षा मांगी तो उस व्यक्ति ने कहा कि मैं तुम्हें भिक्षा दूंगा पर तुम मुझे भिक्षा के बदले क्या दोगें। गुरु गोरखनाथ जी ने कहाँ आप जो भी मांगोगे मैं आपको देने के लिए तैयार हूँ। वह व्यक्ति बोला कि मुझे अपनी एक आँख दे दो। गुरु गोरखनाथ ने तुरंत अपनी आँख निकाली और उस व्यक्ति को दे दी। जब इस बात का पता मत्स्येंद्रनाथ जी को चला तो उन्होनें अपनी दिव्य शक्ति से अपने शिष्य गुरु गोरखनाथ को ठिक कर दिया, तथा कहा कि तुम मेरे से भी बड़े गुरु बनोगे।
गुरु गोरखनाथ तिरिया राज में
मत्स्येंद्रनाथ जी हनुमान जी के आज्ञानुसार तरिया राज में वहाँ की रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ जीवन में थे। जब उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ को यह पता चलती है, तो उन्हें बहुत आघात लगता है। वे निश्चय करते है, कि वे अपने गुरु को वहां से लेकर आयेगे। तरिया राज्य में पुरूषो के जाने पर प्रतिबंध था। हनुमान जी स्वंम इस क्षेत्र की रक्षा करते थे। तब गुरु गोरखनाथ जी ने एक युक्ति निकाली उन्हें रास्ते में कई महिलाओं का समूह मिला जो तिरया राज्य में किसी समारोह में संगीत बजाने के लिए जा रही थी।
जब गुरु गोरखनाथ उनसे मिलते है और उनके साथ तरिया राज में साथ में जाने के लिए कहते है। परन्तु वे महिलाए उन्हें बताते है, कि वहाँ कोई भी पुरुष प्रवेश नही कर सकता तुम वहाँ पर कैसे जाओगें क्या तुम्हें संगीत आदि बजाना आता है, तब गुरु गोरखनाथ जी उन्हें संगीत सुनाते है, और कहते है, कि वे अपना भेष बदलकर तरिया राज में प्रवेश करेगे वे एक स्त्री का रूप रखकर वहाँ पहुँचते है और अपने गुरु मत्स्येंद्रनाथ जी को तरिया राज्य से वापस लाते है।
गुरु गोरखनाथ की आरती
जय गोरख देवा जय गोरख देवा ।
कर कृपा मम ऊपर नित्य करूँ सेवा ।
शीश जटा अति सुंदर भाल चन्द्र सोहे ।
कानन कुंडल झलकत निरखत मन मोहे ।
गल सेली विच नाग सुशोभित तन भस्मी धारी ।
आदि पुरुष योगीश्वर संतन हितकारी ।
नाथ नरंजन आप ही घट घट के वासी ।
करत कृपा निज जन पर मेटत यम फांसी ।
रिद्धी सिद्धि चरणों में लोटत माया है दासी ।
आप अलख अवधूता उतराखंड वासी ।
अगम अगोचर अकथ अरुपी सबसे हो न्यारे ।
योगीजन के आप ही सदा हो रखवारे ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हारा निशदिन गुण गावे ।
नारद शारद सुर मिल चरनन चित लावे ।
चारो युग में आप विराजत योगी तन धारी ।
सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग भय टारी ।
गुरु गोरख नाथ की आरती निशदिन जो गावे ।
विनवित बाल त्रिलोकी मुक्ति फल पावे ।
कर कृपा मम ऊपर नित्य करूँ सेवा ।
शीश जटा अति सुंदर भाल चन्द्र सोहे ।
कानन कुंडल झलकत निरखत मन मोहे ।
गल सेली विच नाग सुशोभित तन भस्मी धारी ।
आदि पुरुष योगीश्वर संतन हितकारी ।
नाथ नरंजन आप ही घट घट के वासी ।
करत कृपा निज जन पर मेटत यम फांसी ।
रिद्धी सिद्धि चरणों में लोटत माया है दासी ।
आप अलख अवधूता उतराखंड वासी ।
अगम अगोचर अकथ अरुपी सबसे हो न्यारे ।
योगीजन के आप ही सदा हो रखवारे ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हारा निशदिन गुण गावे ।
नारद शारद सुर मिल चरनन चित लावे ।
चारो युग में आप विराजत योगी तन धारी ।
सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग भय टारी ।
गुरु गोरख नाथ की आरती निशदिन जो गावे ।
विनवित बाल त्रिलोकी मुक्ति फल पावे ।
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