वीर तेजाजी महाराज राजस्थान के महापुरुष थे

वीर तेजाजी महाराज राजस्थान के महापुरुष थे, इनका जन्म विक्रम संवत 1130 माघ सुदी चैदस के दिन नागवंशीय क्षत्रीय परिवार के नागौर जिले में खरनाल गांव में हुआ था। वीर तेजाजी महाराज को भगवान शिव का 11वां अवतार माना जाता है।

वीर तेजाजी महाराज और पेमल का विवाह

इनका विवाह पनेर गांव में रायमलजी की पुत्री पेमल के साथ  बहुत छोटी उम्र में पुष्कर पुर्णिमा के दिन पुष्कर घाट पर हुआ, जब तेजाजी की उम्र मात्र 9 महिने तथा इनकी पत्नी पेमल की उम्र 6 महीने थी। यद्यपि पेमल के मामा इनके विवाह से खुश नही थें। जिस कारण इनके मामा खाजू-काला को अपनी जान गवानी पड़ी थी।

वीर तेजाजी महाराज की शादी के कुछ समय पश्चात् इनके पिता और पेमल के मामा में विवाद हो गया जिससे पेमल के मामा की मौत हो गयी। जिस कारण उनसे उनकी शादी की बाद छिपाई गयी थी, एक दिन इनकी भाभी ने इन्हें यह बात ताना मानकर कह दी, ये बात सुनकर तेजाजी परेशान हो गये और वे अपनी पत्नी पेमल को लेने  के लिए अपनी घोडी ‘लीलण’ पर बैठकर ससुसाल पनेर के लिए रवाना हुये और पेमल से मिले।

वीर तेजाजी महाराज और मीणा की लड़ाई

ससुराल पहुँचने पर ससुराल वाले से इनकी अनबन हो गयी, जिस कारण ये वहाँ से वापस आने लगे तो इनकी मुलाकात इनकी पत्नी पेमल से उनकी सहेली लाछा गुजरी के यहाँ के हुई उसी रात लाछा गुजरी की गाये मेर के मीणा ने चुरा ली जिससे लाछा गुजरी परेशान हो गयी, उन्होंने तेजाजी से कहाँ की वह उनकी गाये छुड़ा दे तेजाजी ने मीणा से लडे़ और लाछा गुजरी की गाये छुड़ाई इस युद्ध में तेजाजी काफी घायल हो गये थे। घायल अवस्था में ही ये वहाँ से वापस आते है, और जाते वक्त सर्प को दिये गये वचन के अनुसार उसके पास पहुँचते है।

वीर तेजाजी महाराज और नाग देवता

एक दिन जब ये अपने ससुराल जा रहे थे, इन्हें एक सर्प दिखाई दिया जो आग में जल रहा था, इन्होनें उसकी जान बचाई, लेकिन सर्प अपने जोडे़ के खोने के कारण क्रोधित था, वह सर्प उनको डसने लगा। उन्होनें सर्प को कहा कि जब वह वापस आयेगा। तब उसे डस ले। जब ये अपने ससुराल से वापस आते है, घायल अवस्था में ही सर्प को दिये गये वचन के अनुसार उस स्थान पर पहुँचते है, और सर्प से डसने के लिए कहते है उनके शरीर लाछा गुजरी की गायो को छुड़ाते वक्त मीणा से लड़ाई के कारण कई घाव हो चुके थे, जिस कारण उन्होनें सर्प को अपनी जीभ पर काटने को कहाँ इस प्रकार उनकी मुत्यु संवत् 1160 हो गयी, पेमल भी उनके साथ सती हो गयी। अपने वापस आने के वचन को पूरा करने के पर उस सांप (नाग) ने उन्हें वरदान दिया जिस कारण तेजाजी सांपो के देवता के रूप पुज्य हुये।
 


वीर तेजाजी महाराज आरती


थांरा हाथा माही कलश बड़ो भारी कुंवर तेजाजी हावो

साबत सुरा ओ...

धौरे धौरे आरती उतारू तेजा थांकी ओ।

लीलो घोड़ो असवारो कुंवर तेजाजी। हाँ वो सावत सुरा ओ..

धौरे धौरे आरती उतारू तेजा थांकी ओ।

सावली सुरत काना मोती कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

पेरियो थे तो कोट जरी को कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

बॉध्या थे तो पंचरंग पागा कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

थारा गला माय झुले वासक राजा कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

कलयुग जोत सवाई कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

खेडेदृखेडे देवली बनाय कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

बेटो है यो जाट को ने अमर कमायो नाम रे। हॉ वो..

नौमी धारी रात जगावा कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

दसमीं को मेलो भरवे कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

नौमी थारा दूध चढ़वा कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

दसमीं रो चुरमो चढ़ावा कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

बाला की ताती बधावा कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

काला रो खायोंडो आवै कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

भैरूजी नारेल चढ़ावा कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

मिणा ने मार भगाया कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

बांध्या थे तो ढ़ाल गेंडा की कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

धारा हाथा में ही भालो बिजण सारो कुंवर तेजाजी। हॉ वो..

धन थरी जामण जावो कुंवर तेजाजी । हॉ वो..

पाणी री छणयारी धारी धरम केरी बेन्वा वो। हॉ वो..

गावे थानै लोग लुगाया कुंवर तेजाजी

धौरे धौरे आरती उतारू कुंवर तेजाजी रे।।

 
वीर तेजाजी महाराज जी की जय हो


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