दादाजी धूनीवाले एक महान संत थे, ये अपने ही हाथ से (पवित्र अग्नि) धूनि को प्रज्वलित करते थे, तथा ध्यान लगाते थे। इसलिए इन्हें दादाजी धूनीवाले कहा जाना लगा। भक्तों द्वारा दादाजी को भगवान शिव तथा दत्तात्रेय जी का अवतार मानकर इनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि इनके दरबार में बिन मांगे मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
दादाजी धूनीवाले जिनका वास्तविक नाम स्वामी केशवानन्द जी महाराज था। ये घूमते रहते थे, एक बार गौरीशंकर महाराज जो भगवान शिव के परमभक्त थे, अपने टोली के साथ नर्मदा नदी पर परिक्रमा कर रहे थे, नर्मदा माता ने इन्हें दर्शन दिये, नर्मदा माता के दर्शन से ये अति प्रसन्न हुये। तथा इन्होनें नर्मदा माता से भगवान शिव के दर्शन की इच्छा व्यक्त की नर्मदा माता ने इन्हें बताया कि भगवान शिव उन्हीं की टोली में केशवानन्द के रूप में विद्यमान है। गौरीशंकर महाराज वापस जाते है, और केशवानन्द जी में भगवान शिव के दर्शन पाते है।,
राजस्थान
में डिडवाना गाँव में भंवरलाल जी दादाजी धूनीवाले से मिलने आये दादाजी से
मिलने के बाद भंवरलाल जी ने स्वंम को दादाजी धूनी वाले के चरणों में
समर्पित कर दिया। भंवर लाल जी शांत स्वभाव के थे, और ये सदा दादाजी की सेवा
में लगे रहते थे, कुछ समय पश्चात् दादाजी ने इन्हें अपना शिष्य स्वीकार किया। और
इनका नाम हरिहरानंद रखा भक्तजन हरिहरानंद जी को छोटे दादाजी के नाम से
पुकारते थे।
सन् 1930 में बडे़ दादाजी धूनीवाले ने मध्य प्रदेश के खंडवा शहर में समाधी ली। इनकी समाधी के बाद हरिहरानंद को उनका उत्तराधिकारी माना जाने लगा। सन्
1942 में हरिहरानंद जी महाराज (छोटे दादा जी) ने इलाहाबाद में फाल्गुन कृष्णपक्ष की पंचमी में समाधी ली थी, तत्पश्चात् उनके शरीर को एक
लकड़ी के बाॅक्स में रखकर खंडवा लाया गया यह लकड़ी का बाॅक्स आज भी दादाजी के
दरबार में रखा गया है, इनकी समाधी बडे़ दादाजी धूनीवाले के साथ
ही स्थापित की गयी।
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