महासू देवता का मंदिर उत्तराखण्ड में हणोल गांव जौनसार में तमसा (टौंस) नदी के किनारे स्थित है, यहा से देहरादून की दूरी लगभग 190, मसूरी 156 कि0मी0 तथा उत्तरकाशी 150 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। हर वर्ष यहाँ भाद्रपद्र मास की आमावस्या को तीन दिन का महासू देवता का जागरण होता है। श्रद्धालु के लिए महासू देवता का मंदिर वर्षभर खुला रहता है।
पौराणिक मान्यतायें
महासू देवता को यहा के क्षेत्रवासी द्वारा कुलदेवता के रूप में पुजा जाता है। क्योंकि यहां के गांववासियों को एक किरमिक नामक दैत्य द्वारा बहुत अधिक सताया गया, इस राक्षस ने हुणा भट्ट् के सात पुत्रों को मार डाला था। तब इस राक्षस से गांववासियों का पीछा छुड़ाने के लिए हुणा भट्ट् नामक इस ब्राह्मण ने भगवान शिव और शक्ति की तपस्या की जिससे चार भाई महासू की उत्पत्ति हुयी। इस प्रकार महासू देवता ने किरमिक नामक राक्षस का वध कर गांववासियों को इसके आतंक से मुक्त कराया। इसी समय से यहां के गांववासी महासू देवता को कुलदेवता के रूप में पुजते लगे और उनकी पूजा-अर्चना करने लगे।
चार भाई महासू
बोठा महासू, बासिक महासू, पवासी महासू और चालदा महासू चार भाई महासू है। जिन्होनें क्षेत्रवासियों को किरमिक नामक राक्षस के आतंक से मुक्त कराया था। इनमें से बोठा महासू का मंदिर हनोल में है, महासू देवता की पूजा उत्तराखण्ड में जौनसार-बावर, रवाई परगना और उत्तरकाशी के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश के सोलन, सिरमौर, शिमला, जुब्बल, बिशैहर में भी की जाती है, यहाँ के क्षेत्रवासी महासू देवता को न्याय का देवता मानते है। इनके द्वारा लिया गया निर्णय यहां के सभी क्षेत्रवासियों को सर्वमान्य होता है।
मंदिर के पास ही छोटे-छोटे पत्थर है, जिन्हें भीम के कंचे कहा जाता है, जो दिखने में काफी छोटे प्रतीत होते है, इन पत्थरो को उठाना हर किसी के बस की बात नही है, बहुत ही कम व्यक्ति इन पत्थरों को उठा पाता है। मान्यता है, कि जो व्यक्ति सच्चे मन से महासू देवता की पूजा करता है। वही इनको उठा पाता है।
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