शीतला अष्टमी के दिन माता शीतला का व्रत व पूजन किया जाता है। इस दिन माता को भोग लगाने के लिए एक दिन पहले विभिन्न प्रकार के पकवान बनाये जाते है। और माता शीतला को बासी पकवान से भोग लगाया जाता है। इसलिए इसे बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है।
बसौड़ा में चने की दाल, हल्वा, रबड़ी, मीठे चावल, बिना नमक की पूरी आदि तैयार की जाती है। इस दिन घर में खाना नही बनाया जाता है। बासी भोजन को श्रद्धालुओं द्वारा प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
शीतला अष्टमी के व्रत का महत्त्व
शीतला माता हाथो में कलश, सूप, झाडू तथा नीम के पत्ते धारण करती है, इनकी स्वारी गर्दभ है। इनका व्रत करने से घर में धन-धान्य का आभाव नही रहता, एवं घर में दाहज्चर, पीतज्चर, चेचक, नेत्र रोग एवं फोडे आदि माता की कृपा से पास भी नही आते। इस दिन व्रत करने से घर में आरोग्यता एवं सुख-शांती बनी रहती है।
लोकमान्यताओं के अनुसार
माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए उन्हें एक दिन पूर्व तैयार किये गये तरह-तरह के पकवानों का भोग लगाया जाता है। एकबार गांव वालो ने माता शीतला की पूजा अर्चना करने के बाद उन्हें गर्म पकवानो का भोग लगाया जिस कारण माता का मुँह जल गया। इससे माता क्रोधित हो गयी और उनके कोप से पूरे गांव में आग लग गयी। सिर्फ एक बूढ़ी माता जो शीतला अष्टमी के पर्व पर माता को एक दिन पूर्व तैयार किये गये पकवानो का भोग लगाती थी, ततपश्चात् प्रसाद ग्रहण करती थी, उसका घर सुरक्षित रहा, जब लोगो ने इस चमत्कार के बारे में पूछा तो बूढ़ी माता ने बताया कि वह माता को एक दिन पूर्व तैयार किये गये पकवानों का भोग लगाती है। गांव वासियों को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होनें माता से क्षमा मांगी बासी भोजन का भोग लगाकर माता का पूजन किया।
कैसे करें व्रत
प्रातः उठकर स्नान करना चाहिए। माता का स्मरण करके व्रत का संकल्प करना चाहिए, तथा माता को पुष्प आदि अर्पित करके पूजन करना चाहिए, तथा इसके पश्चात् एक दिन पूर्व तैयार किये गये बासी पकवान बिना नमक की पूरी, मेवे, मिठाई आदि का भोग लगाना चाहिए।
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