माँ पूर्णागिरी मंदिर उत्तराखण्ड के टनकपुर (चम्पावत) में स्थित है। प्रत्येक वर्ष यहां चैत्र व पौष माह में श्रद्धालु पूजा-पाठ के लिए आते है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, जो लगभग 5500 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, इस जगह पर माता सती की नाभी गिरी थी, नवरात्रों के समय यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।
यहाँ पहुँचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर है, जहाँ से माँ पूर्णागिरी मंदिर की दूरी 18 किमी0 है, यहाँ से आगे पहाड़ी मार्ग होने कारण बस या टैक्सी से यात्रा करनी होती है, जिसकी दूरी 15 किमी0 है, जहाँ से टुन्यास नामक स्थान पर पहुँचते है, जहाँ पर भैरव बाबा का मंदिर है, श्रद्धालु माँ पूर्णागिरी के दर्शन के पश्चात् ही भैरो बाबा के दर्शन करते है, टुन्यास में एक नदी बहती है, जिसे शारदा नदी के नाम से जाना जाता है।
टुन्यास से आगे 3 किमी0 की यात्रा पैदल यात्रा तय करनी होती है, यहाँ से लगभग डे़ढ कि0मी0 की दूरी पर झंूठे का मंदिर है, कुछ दूरी तय करने पश्चात् माँ काली का मंदिर है, जहाँ श्रद्धालु माँ के दर्शन कर आगे की यात्रा प्रारम्भ करके माँ पूर्णागिरी मंदिर में पहुँचते है। यहाँ श्रद्धालुओं के विश्राम लिए कई धर्मशालें बनी है।
झूठे मंदिर की कहानी (juthe mandir ki kahani)
यहाँ पर झूंठे का एक मंदिर है, जिसके बारे में मान्यता है, कि एक बार एक व्यापारी जो निसंतान था, उसने माता से मन्नत माँगी की उसकी कोई संतान होगी तो वह माता को सोने का मंदिर चढ़ायेगा। कुछ समय पश्चात उसकी संतान हुई, तब उसने पीतल से मंदिर बनवाया और उस पर सोने की पोलिश कर दी।
रास्ते में उसने मंदिर को एक जगह पर रखा जिसके बाद वह मंदिर दुबारा उठा नही पाया। यह मंदिर पूर्णागिरी मंदिर में के रास्ते में पड़ता है।
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