अशोक वृक्ष का महत्व: पर्यावरण को संतुलित रखने के साथ-साथ औषधीय गुणो से भरपूर

अशोक का पेड़ सदैव हरा-भरा रहने वाला वृक्ष है, मुख्य रूप से इस वृक्ष को आंगन की शोभा बढ़ाने एवं बगीचों में लगाया जाता है। इस वृक्ष को प्रायः सीता अशोक वृक्ष भी कहते है। अशोक का वृक्ष आम के वृक्ष के समान होता है, जिसके पेड़ की ऊँचाई लगभग 20 फीट तक होती है। भारत में सीता अशोक का वृक्ष सभी जगह पाया जाता है। इसे संस्कृत में हेमपुष्प, ताम्रपल्लव और गन्धपुष्प कहा जाता है, अशोक वृक्ष का वैज्ञानिक नाम– सराका असोका (saraca ashoka) है।

 

इसके तने का रंग हल्का भूरा होता है, जो स्वाद में कडवा होता है। इसके पेड़ो में फल वसंत ऋतु में आते है, इसके पत्ते पहले तांबे के रंग के समान होने कारण इसे ताम्रपल्लव तथा इसके फूल गुच्छो में खिलते है, जो सुनहरी लाल रंग के होने कारण इसे हेमपुष्प कहा जाता है।

इसके अलावा एक नकली अशोक का वृक्ष भी होता है, जो असली अशोक के वृक्ष से भिन्न होता है, इसके पत्ते आम के पत्तों की तरह होते है। इसमें सफेद-पीले रंग के फूल खिलते है। इसके पेड़ से किसी भी प्रकार की औषधी प्राप्त नही होती है, इसका पेड़ लम्बा होता है, जो देवदार के वृक्षों के समान होते है।

 

और अधिक पढे़ वृक्षों के बारे में>>>>>>>>

अशोक वृक्ष का महत्व प्राचीन परम्परा के अनुसार

वृक्ष धरा के आभुषण है, जो पर्यावरण को संतुलित करने में अपनी अहम भूमिका निभाते है, इनमें कुछ वृक्ष ऐसे भी है, जिन्हें भारतीय संस्कृति में पुजा जाता है, जैसे, पीपल का वृक्ष, वट का वृक्ष, अशोक का वृक्ष आदि ऐसे वृक्ष है, जिन्हें सभी प्रकार के मांगलिक कार्यो के शुुभ माना जाता है। जब रावण माता सिता का हरण करके ले गया, तो माता सिता अशोक के वृक्ष के निचे ही रहती थी जहाँ हनुमान जी ने माता सिता को भगवान श्री राम की भेंट प्रदान की थी। प्राचीन काल से अशोक के वृक्ष का महत्त्व रहा है। अशोक वृक्ष का अर्थ— अ याने ‘नही’ शोक का अर्थ दुखः अर्थात दुखः को हरने वाला वृक्ष।

अशोक वृक्ष से लाभ

आयुर्वेद में अशोक वृक्ष के फूल, बीज, पत्ता और छाल को उपयोग में लाया है, जिसे विभिन्न प्रकार के रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। अशोक का वृक्ष कई रोगों जैसे कृमि रोग, पेट का रोग, मूत्र विकार, पथरी के दर्द आदि रोगों के उपचार में उपयोग में लाया जाता है।

Post a Comment

1 Comments

thank for reading this article