रम्माण एक ऐसा उत्सव है, जिसे यूनिस्को द्वारा 2 अक्टूबर 2009 में विश्व धरोहर घोषित किया गया है। रम्माण का उत्सव सलूड गांव की 500 साल पुरानी परंपरा है। इस अवसर पर भुमियाल देवता तथा मुखौटा नृत्य का आयोजन किया जाता है। यह उत्सव 11 से 13 दिन तक मनाया जाता है।
रम्माण उत्सव में दो प्रकार के मुखौटे होते है- पहला द्यो पतंर है (जो देवताओं के मुखौटे होते है) तथा दूसरे प्रकार के मुखौटे खल्यारी होते है (जो मनोरंजन के मुखौटे है) पात्रो द्वारा इन मुखौटे से रम्माण उत्सव में अभिनय किया जाता है।
रम्माण उत्सव उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के जोशीमठ ब्लाक के सलूड गांव में प्रत्येक वर्ष अप्रैल माह में होता है, इसके अलावा रम्माण बरोशी, अलावा डुग्री और सेलंग आदि गांवो में भी रम्माण का उत्सव किया जाता है, लेकिन सलूड गांव का रम्माण काफी प्रसिद्ध है।
रम्माण के उत्सव में अभिनय करने वाले पात्र मुखौटे लगाकर रामायण के प्रसंगो पर नृत्य करते है, इस नृत्य में अभिनय करते हुये पात्रों के बीच किसी प्रकार का संवाद नही होता इस नृत्य में 18 ढोल-दमाऊ, 18 तालो, 18 भोंकोरो, 18 पत्तर बिना बोलने वाले नृत्य का आयोजन होता है। रम्माण उत्सव को जो कभी स्थानीय लोगो तक ही सीमित था इस उत्सव को विश्व विख्यात करने का श्रेय कुशल सिंह भण्डारी को जाता है।
रम्माण के उत्सव में किये जाने वाले प्रमुख नृत्य
माल-मल्ल युद्ध नृत्य जो गोरखों तथा स्थानीय लोगों के बीच युद्ध का वर्णन है,
वण्या-वण्याण- जो भारत-तिब्बत व्यापार से संबंधित है,
कुरू जोगी- यह एक हास्य नृत्य है।
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