भगवान नारायण ने अपने भक्त की रक्षा के लिए लिया था, नृसिंह अवतार भगवान नृसिंह को शक्ति तथा पराक्रम का देवता माना जाता है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान नृसिंह ने अवतार लेकर राजा हिरण्यकश्यप का वध कर अपने भक्त प्रहलाद के जीवन की रक्षा की।
नरसिंह देवता की कथा
उसने कई वर्षो तक भगवान ब्रहृा की तपस्या की भगवान ब्रहृा ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे अजेय होने का वरदान दिया, वरदान प्राप्त कर उसने स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार जमा लिया। सभी देवता विवश हो गये। क्योंकि उसे कोई भी हरा नही पा रहा था। इस प्रकार अपने भक्तों की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने पृथ्वी अवतार लिया। भक्त प्रहलाद की जीवन की रक्षा के लिए उन्हें नृसिंह रूप रखना पड़ा।
इस प्रकार हिरण्यकश्यप पूर्ण रूप से अहंकारी हो गया उसने प्रजा पर भी अत्याचार करना प्रारंभ कर दिया, कुछ समय पश्चात् हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, उसका नाम प्रहलाद रखा गया, दैत्य कुल में जन्म लेने के बावजूद भी प्रहलाद में बिल्कुल भी दैत्यों जैसे र्दुगुण न थे, वह सदैव अपने पिता द्वारा किये गये अत्याचार का विरोध करता था। उसका पुत्र प्रहलाद सदैव भगवान नारायण की स्तुति करते रहते थे, उसके पिता हिरण्यकश्यप को यह बात अच्छी न लगी उसने भक्त प्रहलाद को उसके भक्ति मार्ग से हटाने के अनेको प्रयास किये। लेकिन भक्त प्रहलाद अपने मार्ग से विचलित न हुये, भक्त प्रहलाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप द्वारा अनेके षडयंत्र किये गये, परंतु भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें कुछ भी न हुआ। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका द्वारा प्रहलाद को जिन्दा जलाने का प्रयास किया गया, होलिका ने प्रहलाद को अपने गोद में बिठाकर अग्नि में प्रवेश किया होलिका तो जलकर राख हो गयी, लेकिन भक्त प्रहलाद ज्यों के त्यों जीवित रहे, यद्यपि होलिका को वरदान था, कि उसे अग्नि जला नही सकती। फिर भी वह जलकर राख हो गयी।
इस घटना को देखकर हिरण्यकश्यप और अधिक क्रोधित हो गया, उसने प्रहलाद से कहा तेरे भगवान कहां है, भक्त प्रहलाद ने विन्रम भाव से बोला कि वे सर्वत्र है, और उसने प्रहलाद से कहा कि तेरे भगवान इस खंबे में भी है, तो बुला अपने भगवान को। इस प्रकार अपने भक्त की रक्षा के लिए भगवान विष्णु खंबे को चीरकर नृसिंह रूप में अवतरित हुये और राक्षक हिरण्यकश्यप का वध किया।
नरसिंह देवता की आरती
आरती कीजै नृसिंह कुंवर की।
वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी।।
पहली आरती प्रह्लाद उबारे,
हिरणाकुश नख उदर विदारे।
दूसरी आरती वामन सेवा,
बलि के द्वार पधारे हरि देवा।
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे,
सहसबाहु के भुजा उखारे।
चौथी आरती असुर संहारे,
भक्त विभीषण लंक पधारे।
आरती कीजै नृसिंह कुंवर की।
पांचवीं आरती कंस पछारे,
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले।
तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा,
हरषि.निरखि गावें दास कबीरा।
आरती कीजै नृसिंह कुंवर की।
वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी।।
ॐ जय नृसिंह हरे, प्रभु जय नृसिंह हरे।
स्तम्भ फाड़ प्रभु प्रकटे, स्तम्भ फाड़ प्रभु प्रकटे, जन का ताप हरे॥ ॥
ॐ जय नृसिंह हरे॥
तुम हो दीन दयाला, भक्तन हितकारी, प्रभु भक्तन हितकारी।
अद्भुत रूप बनाकर, अद्भुत रूप बनाकर, प्रकटे भय हारी॥ ॥
ॐ जय नृसिंह हरे॥
सबके ह्रदय विदारण, दुस्यु जियो मारी, प्रभु दुस्यु जियो मारी।
दास जान अपनायो, दास जान अपनायो, जन पर कृपा करी॥ ॥
ॐ जय नृसिंह हरे॥
ब्रह्मा करत आरती, माला पहिनावे, प्रभु माला पहिनावे।
शिवजी जय जय कहकर, पुष्पन बरसावे॥ ॥
ॐ जय नृसिंह हरे॥
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