नन्दा देवी राजजात यात्रा विश्व की सबसे लंबी धार्मिक पैदल यात्रा है। यह यात्रा प्रत्येक 12 वर्ष में आयोजित होती है। नंदा देवी राजराज यात्रा का प्रारंभ चमोली जिले के कांसवा गांव के समीप नौंटी गांव से प्रारंभ होता है। जिसका अंतिम पड़ाव होमकुण्ड होता है। पहली नंदा देवी राजजात यात्रा 1905 में प्रारम्भ हुई थी, यह यात्रा लगभग 200 कि0मी0 की पैदल यात्रा है।
उत्तराखण्ड में लोग नंदा देवी को अपनी बेटी की तरह मानते है। राजजात की यात्रा नंदा देवी के विदाई के रूप में आयोजित की जाती है। इस यात्रा में चार सिंगों वाला मेढ़ा (खाडु) का विशेष महत्त्व है। यात्रा के दौरान चार सिगों वाला मेढ़ा सबसे आगे होता है, तथा इसके पिछे रिगाल से बनी हुयी छतौली को लेकर श्रद्वालु चलते है।
चैसिंगा खाडु जो कि ठिक राजजात होने से पूर्व पैदा होता है, इसकी पीठ पर दो तरफा थैले में श्रद्वालु द्वारा माता के भेंट के लिए गहने, श्रृंगार का सामान रखा जाता है, होमकुण्ड में पुजा के बाद चैसिंगा खाडु हिमालय की ओर प्रस्थान करता है। लोक मान्यताओं के अनुसार चैसिंगा खाडु कुछ दूरी तय करने के बाद लुप्त हो जाता है। व नंदा के क्षेत्र में कैलाश में प्रवेश कर जाता है।
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इस यात्रा के दौरान कई पड़ाव पडते है जो कुलसारी से होते हुये नन्दकेशरी पहुँचते है। इसी स्थान में कुमाऊँ से भी श्रद्वालु इस यात्रा में शामिल होते है, यहाँ से श्रद्वालु वाण पहुँचते है, जहाँ से राजजात यात्रा में लाटू देवता शामिल होता है। यात्रा का यह पडाव गांव का अंतिम पडाव है, यहां से आगे कोई वस्ती नही है। वाण गांव से अगला पडाव वैदनी बुग्याल का होता है, जो करीब 13000 फीट पर स्थित है, यहां से आगे श्रद्वालु रूपकुण्ड होते हुये होमकुण्ड पहुँचते है। जो कि यात्रा का अंतिम पड़ाव है।
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