जय श्री बद्री विशाल

जय श्री बद्री विशाल 

बद्री विशाल (बद्रीनाथ) जी का मंदिर चमोली जिले में स्थित है। सभी प्रमुख तीर्थों में से यह प्रमुख तीर्थ है। हमारे प्राचीन ग्रंथो जैसे महाभारत एवं पुराणो में श्री बद्रीनाथ जी को बद्रीकाश्रम, बद्रीवन एवं विशाला आदि नामो से संबोधित किया गया है। श्री बद्रीनाथ जी मूर्ति 1 मी0 (3.3 फीट) लंबी शालीग्राम की है। 
मान्यता है। कि आदिगुरू शंकरार्चाय जी ने 8वीं शताब्दी में  मूर्ति नारद कुण्ड से निकालकर यहां स्थापित की थी। यहां के मुख्य पुजारी केरल राज्य के नम्बूदरी बा्रह्मण होते है। 
श्री बद्रीनाथ जी के मंदिर में भगवान विष्णु जी की पूजा होती है। यह मंदिर अलकनंदा तट पर स्थित है। यह एक
धार्मिक स्थान होने के साथ-साथ प्रकृति के सौंन्दर्य  से भरा हुआ है।

कपाट खुलने का समय- प्रत्येक वर्ष मई माह में यहां के कपाट खुलते है। इससे पहले यह स्थान पूर्ण रूप से बर्फ से ढका रहता है। जिस कारण मई माह से पहले यहां कि यात्रा बंद रहती है।
कपाट बंद होन का समय- यहां के कपाट नवम्बर माह में बंद हो जाते है। इसके बाद यह का मार्ग पूर्ण रूप से बंद हो जाता है। (यह स्थान बर्फ से ढक जाता है।)




पंचबद्री- पांच प्रमुख स्थानो को माना जाता है।
1. बद्रीनाथ- पौराणिक कथायें- पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके आस-पास का स्थान शिव भूमि (केदार खण्ड) जाना जाता है। मान्यता है। कि जब गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई तो यह बारह धाराओं में बँट गयी बद्रीनाथ क्षेत्र में जो धारा वही उसे अलकनन्दा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है। जब भगवान विष्णु तप के लिए उचित स्थान को ढूढ रहे थे। तो शिव भूमि (केदार खण्ड) स्थान उन्हें अति प्रिय लगा, इस प्रकार उन्होंने इस स्थान पर छोटे बालक का रूप धारण कर लिया तथा रोने लगे, जिससे माता पार्वती का ह्नदय करूणा से भर गया और वे बालक के पास पहुची तथा बालक को मनाया जिससे बालक ने अपने तप करने के लिए इस स्थान को मांगा। वर्तमान में यही स्थान श्री बद्रीनाथ जी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है, कि व्यास जी ने यहा महाभारत लिखी थी।

2. आदि बदरी -आदिबद्री- यह चमोली जिले में कर्णप्रयाग से रानीखेत मार्ग पर लगभग 16 कि0मी0 दूर है। इस मंदिर का प्राचीन नाम नारायण मठ था। यह भगवान विष्णु का मंदिर है। यहां भगवान विष्णु की 3फीट ऊँची मूर्ति है, मान्यताओ के अनुसार भगवान विष्णु सतयुग, द्वापर और त्रेता युग में आदिबद्री मंदिर में बद्रीनाथ के रूप में रहते थे। इस छोटी सी जगह में सोलह मंदिर बने हुये है, इनमें प्रमुख मंदिर आदिबद्री जी का है। शंकराचार्य द्वारा यहा मूर्तिया स्थापित की गयी थी। आदिबद्री पंचबद्री में से एक है। वर्तमान में 16 मूर्तियो में से 14 मूर्तिया ही शेष है। 

3. योगध्यानबद्री- योगध्यानबद्री का मन्दिर (पांडुकेश्र नामक तीर्थ) घाट से 3 कि0मी0 दूरी पर है। यहा भगवान विष्णु योग मुद्रा में है। शीतकाल में यहां पूजा अर्चना की जाती है।

 4. भविष्यबदरी- यह मन्दिर भी चमोली जिले के जोशीमठ मार्ग में जोशीमठ से 25 कि0मी0 की दूरी पर सुभई गांव में है। यहां पर भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार के दर्शन किये जाते है। जो 24 अवतारो में से एक अवतार है। भविष्यबद्री-  मान्यताओ के अनुसार प्रकृति में जब बदलाव होगा, जब बद्रीनाथ मार्ग पर जय और विजय पर्वत आपस में जुड जायेगे, और जोशीमठ में भगवान नृसिंह की मूर्ति खंडित हो जायेगी, तो उस समय भगवान बद्रीनाथ के दर्शन भविष्यबद्री में होगें,

5- वृ़द्धबद्री- बद्रीनाथ से 8 कि0मी0 दूरी पर है। यह मंदिर पूरे वर्ष खुला रहता है। इसे सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है यह अणीमठ स्थान पर स्थित हैं ।

प्रमुख स्थान-

तप्त कुण्ड- इस कुण्ड में हमेशा गर्म जल रहता है। बद्रीनाथ पहुँचने के पश्चात् तीर्थयात्री इस कुण्ड में स्थान करने के बाद भगवान बद्रीविशाल जी के दर्शन करते है। माना जाता है। इस कुण्ड में स्नान करने से कई प्रकार के रोगो से मुक्ति मिलती है। तथा कई जन्मो के पाप घुल जाते है। तथा उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। यहां पर पुरूष एवं महिला दोनों के स्नान लिए अलग-अलग कुण्डो की व्यवस्था है। 
ब्रहमा कपाल-  यहा पर तीर्थयात्री अपने पित्रों को शांति प्रदान करने के लिए पिंडदान करते है

  • शेष नेत्र
  • चरण पादुका
  • नीलकंठ
  • माणा गावं
  • वेद व्यास गुफा, गणेश गुफा
  • भीम पुल, सरश्वती नदी
  • बसु धारा
  • लक्ष्मी वन, अलकापुरी आदि  

 

 

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