विंध्याचल पर्वत पर माता का मंदिर है, जिन्हें विंध्य पहाड़ो की रानी विंध्यावासिनी माता कहते है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है।


विंध्याचल पर्वत की ऊँचाई 1,048 मी0 (3,438 फीट) एवं क्षेत्रफल 61,131.5 किमी2 है। यह गोलाकार पर्वत की एक श्रृंखला है। जो भारत के उपखण्ड को दो भागों उत्तरी भारत एवं दक्षिणी भारत में बाँटती है। इसमें बहने वाली प्रमुख नदियाँ चंबल, केन, बेतवा, तमसा, टोन्स, सोन, काली, सिंध और पार्वती आदि है। यह प्राचीन भारत के सप्तकुल पर्वतो में से एक है। इस पर्वत श्रृंखला का वर्णन वेद, रामायण, पुराण, और महाभारत में मिलता है। विंध्य पहाड़ो की रानी विंध्यावासिनी माता है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है।



इसके अनेक दुर्ग है चुनारगढ़, रोहतासगढ़, कलिंजर आदि एवं चित्रकूट, विन्ध्याचल आदि अनेक पावन तीर्थ स्थान हैं। 

विंध्याचल पर्वत की कहानी
 
पौराणिक ग्रन्थो के अनुसार विंध्याचल पर्वत ने सुमेरू र्से ईष्या करने के कारण भगवान सूर्य का मार्ग अवरूद्व किया था और ऊँचाई में आकाश तक बढ़ गया था, जिसे अगस्त्य ऋषि ने कम किया यह स्थान अगस्त्य, शरभंग आदि ऋषियों की तपरस्थली रहा है।

इस प्रकार अगस्ति मुनि ने विंध्याचलपर्वत से कहा कि वे यात्रा पर जा रहे है, पर्वत ने उन्हें झुककर प्रणाम किया और अगस्ति ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि वे जब तक वापस नहीं आ जाते तुम्हें इसी प्रकार झुककर रहना होगा। इस प्रकार अगस्ति मुनि उस रास्ते से कभी वापस नहीं आये ओर विंध्याचल पर्वत आज भी उनके आने की प्रतीक्षा में झुका हुआ है।

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