योग का मुख्यः अर्थ किसी वस्तु से जुड़ना है। योग न केवल हमारे स्वास्थ्य को दुरस्त रखता है अपितु आध्यात्म जगत में भी योग का बहुत अधिक महत्व है। अनेक धर्मगरुओं ने समय-समय पर योग की शिक्षा दी, ताकि मानव इस ज्ञान को पाकर आध्यात्म से जुड़कर आत्मोथान कर सके। वास्तव में मन का स्वभाव चंचल है। कभी भी कही भी किसी भी समय विचरण करता रहता है। जिस वस्तु में उसे आनन्द की अनुभूति होती है। वही रूक जाता है।
ऋषियों द्वारा अनेक प्रकार की शिक्षायें दी गयी ताकि चंचल मन को सही दिशा प्रदान की जा सके। तथा अपने अंदर की सभी उर्जाओं का सही ढंग से सही जगह प्रयोग कर सके, एवं सभी प्रकार की सांसारिक वस्तुओं से हटकर परमात्मा का साक्षात्कार किया जा सके।
ऋषियों द्वारा अनेक प्रकार की शिक्षायें दी गयी ताकि चंचल मन को सही दिशा प्रदान की जा सके। तथा अपने अंदर की सभी उर्जाओं का सही ढंग से सही जगह प्रयोग कर सके, एवं सभी प्रकार की सांसारिक वस्तुओं से हटकर परमात्मा का साक्षात्कार किया जा सके।

धर्मगुरुओं ने योग साधना के आठ अंग बताए, क्योकि एक ही चरण में योग की प्रक्रिया को समझना आसान नही है। एक नये साधक के लिए ये आठ चरणों से गुजरना आवश्यक बताया गया है।
1. यम 2. नियम 3. आसन्
4. प्राणायाम् 5. प्रत्याहार 6. धारणा
7. ध्यान 8. समाधि
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