अनोखी मित्रता भगवान श्री कृष्ण और सुदामा

एक सच्ची मित्रता सभी अमीरी-गरीबी के बिच के फासले को मिटा देती है। जिसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण भगवान श्री कृष्ण और सुदामा है। जो कि बचपन में काफी अच्छे मित्र थे, बिछड़ जाते है। सुदामा जो कि एक गरीब ब्रह्यमण था उसके पास अपने परिवार का भरण-पोषण के लिए न तो धन था और न ही अन्न व न ही वस्त्र सुदामा की पत्नी एक बार सुदामा को कहती है। कि हमारे पास घर को चलाने के लिए कुछ भी नहीं है। तुम्हारा मित्र कृष्ण जिसकी तुम बार-बार जिक्र करते हो उनसे कुछ सहायता ले लो। गरीब सुदामा अपने फटे पुराने हाल में श्री कृष्ण के पास द्वारका पहँच जाता है। श्री कृष्ण के महल में पहुँचने पर द्वारपाल उन्हें रोकता है कि तुम कहाँ जा रहे हो सुदामा कहता है। कि उसे श्री कृष्ण से मिलना है। द्वारपाल कृष्ण को बताते है कि उनसे मिलने कोई आदमी आया है।


श्री कृष्ण स्वंम उनसे मिलने पहुँच जाते है। वे सुदामा को अपने सिंहासन पर बिठाते है और उनके पांव धोते है। और अपने बालपन को याद करते है। सुदामा को जो पाटली उनके पत्नी ने दी थी जिसमें कुछ चावल के दाने थे। सुदामा उसे छिपाने लग जाते है। लेकिन श्री कृष्ण उस पोटली को ले लेते है। पोटली से चावल निकालकर खाने लगते है उनके आँख से आंसु निकल आते है वे सुदामा से कहते है कि भाभी ने कितने प्रेम से उन्हें चावल भेजे हैै और तुम उसे छुपा रहे हो,


फिर श्री कृष्ण और सुदामा दोनो मिलकर भोजन करते है। सुदामा मन ही मन सोचता है। कि उसने अपना पेट तो भर लिया पर घर पर पत्नी और बच्चें भूखे होगें। सुदामा अपनी दशा को श्री कृष्ण से बता नही सके। इस प्रकार वे कुछ दिन द्वारका में बिताते है। और श्री कृष्ण से विदाई लेकर घर को वापस आते है। वापस आते हुये सोचते है कि पत्नी को क्या कहे क्योंकि सुदामा की पत्नी ने उसे श्री कृष्ण से सहायता मांगने भेजा था। जब वह घर के नजदीक पहुँचता है तो उसे अपनी झोपड़ी कही नजर नही आती सुदामा भौचक्का रह जाता है। कि उसकी झोपड़ी कहाँ गयी। जहाँ उसकी झोपड़ी थी एक सुन्दर महल बन गया था। उसकी पत्नी उसे आवाज लगाती है। सुदामा समझ नही पाता कि ये क्या हो रहा है। उसकी पत्नी उसे बताती है। कि ये सब श्री कृष्ण ने ही दिया है। इस प्रकार सुदामा को श्री कृष्ण का स्मरण हुआ। और सुदामा जीवन अराम से व्यतीत करने लगा।

Post a Comment

0 Comments