चीड़ का वृक्ष

इसका तना सीधा, ऊँचा, स्तभ होता है। इसमें कई शाखाये निकलती है। इसकी पत्तियां लंबी नुकीली सुई के आकार की होती है, जो शाखाओं पर दो, तीन, पाँच सात या एक गच्छो मे लगी होती है। कुछ समय पश्चात़ पत्तिया पीली हो जाती जो धीरे-धीरे जमीन पर गिरती रहती है। इसकी सूईनुमा पत्तिया सदैव हरी-भरी रहती है। चीड़ के वृक्ष का आकार पिरामिड की तरह होता है, वृक्ष के पुराने हो जाने पर इसका आकार गोलाकार हो जाता है। इसकी छाल मुख्यतः मोटी व खुरदरी होती है। वसंत ऋतु के आगमन पर चीड़ के एक ही पेड़ पर नर व मादा शंकु निकलते है। जिसके अन्दर असंख्य बीज पाये जाते है। इसके बीज आसानी से हवा में काफी दूर तक उड़ जाते है। इसके तनें से एक गोद की आकृति निकलती है। चीड़ के वृक्ष की लगभग 115 प्रजातियाँ पायी जाती है। ये लगभग 3 मी0 से 80 मी0 तक लंबे होते है। यह वृ़क्ष पायनेसीए कुल का पादप है। तथा इसकी प्रजाती पाइनस, वर्ग पिनोप्सिडा, गण पायनालेज़ है। इसका वानस्पतिक नाम ‘पाइनेवस्ट रौक्स बरगाई’ है।

उपयोग- 

दैनिक जीवन में चीड़ की लकड़ी का उपयोग बड़ी इमारतो को बनाने में, कुर्सी, मेज बनाने में, पुल निर्माण में लकड़ी के बाॅक्स या सन्दूक बनाने में दरवाजे, खिंडकिया आदि अनेक वस्तुओं को बनाने के लिए इसकी काष्त का प्रयोग किया जाता है।

रोशनी के रूप स्थानीय लोगों द्वारा प्रयोग-

काफी समय पहले जब बिजली सभी घरो में उपलब्ध नही हुआ करती थी। रोशनी करने के लिए प्राप्त मिट्टी का तेल उपलब्ध नही था। चीड़ की लकड़ी का उपयोग रोशनी करने के लिए भी किया जाता था। कई विद्यार्थी भी इसी रोशनी में अपना पठ्न-पाठन करते थे। तो जहाँ चीड़ पाया जाता है। वहाँ के स्थानीय लोगो द्वारा चीड़ के वृक्षों जो कि हवा में क्षतिग्रस्त हो जाते है। या अत्याधिक बर्फ पड़ने कारण क्षतिग्रस्त हो जाते थे। तब स्थानीय लोग चीड़ के क्षतिग्रस्त पेड़ से लकड़ी को छोटे-छोटे आकार में बनाकर इसका उपयोग प्रकाश करने के लिए करते थे। इसकी लकड़ी के कुछ भाग में एक तेल पाया जाता है। जो लकड़ी को जलने में मदद करता है। रात्री में एक एक स्थान से दूसरे स्थान में जाने के लिए भी इसका प्रयोग रोशनी करने के लिए किया जाता था। इसकी लकड़ी माचिस की तिली की भाँति आसानी से जलती है।

स्थानीय लोगों द्वारा चीड़ की गिरी हुई सुखी पत्तियों का उपयोग- 

चीड़ की पत्तिया जिसे स्थानीय भाषा में पिरूल कहते है। जब सूखकर पेड़ से नीचे गिरती है। जिसका मुख्यतः उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा पालतू जानवरों के विछोने के रूप में भी किया जाता है।

खाद के रूप में चीड़ की पत्तियों का उपयोग-

खाद के रूप मेें चीड़ की पत्तियो का उपयोग- पालतू जानवरो के बीछोने मेें जो चीड़ की सूखी पत्तिया डाली जाती है। और उसे बाद में एकत्रित कर एक जगह डंप किया जाता है। कुछ दिनों तक इसे रखा जाता है। जो पालतु जानवरो के गोबर और सूखी चीड़ की पत्तियों का मिश्रण होता है। खेतों में आर्गेनिक खाद के रूप में स्थानीय लोगों द्वारा इसका प्रयोग किया जाता है। जिससे खेतो में उन्नत किस्म की फसल तैयार होती है।
कोयला निर्माण में चीड़ की पत्तियों का उपयोग- चीड़ की सूखी पत्तियों को एकत्र कर एक ड्रम के अन्दर कम आक्सीजन की उपस्थिति में जलाया जाता है। इसके पश्चात़ इसमें कुछ प्रतिशत गोबर मिलाकर गूथां जाता है। इस तरह इसे एक विशेष मशीन मेें (मोल्डिंग मशीन) में डाला जाता तथा कोयला तैयार किया जाता है। जो कि पर्यावरण संरक्षण में काफी फायदेमंद है।

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