शिवलिंग हस्त मुद्रा, आकाश हस्त मुद्रा

 

शिवलिंग हस्त मुद्रा में दोनों हाथों  को एक साथ उपयोग में लाया जाता है। इससे चेतना और उर्जा का संचार होता है। इसे उर्जा दायक मुद्रा भी कहते है। अंगेजी में इस मुद्रा को अपराइट मुद्रा कहते है। 

विधि— इस मुद्रा को करने के लिए सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठिए। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखे, अंगुलियो को आपस में इस प्रकार फसाये कि बांए हाथ का अंगूठा सीधा रहे। तथा दांए हाथ के अंगूठे को बाएं हाथ के अंगूठे के नीचे गोल आकृति बनाकर रखते है।


लाभ— इस मुद्रा से शरीर में उष्मा उत्पन्न होती है। अंगूठा अग्नि तत्व का प्रतीक है। इस मुद्रा को करने से शरीर के कई विकार दूर होते है। शरीर में कफ, खांसी, जुकाम, अस्थमा, आदि रोगो में यह मुद्रा लाभदायक है। यह मुद्रा फेफड़ो को मजबूत बनाती है। सर्दियों  मे भी यह मुद्रा लाभदायक है।

 

सावधानियाँ— इस मुद्रा को खाली पेट करना चाहिए। शिवलिंग मुद्रा करने से शरीर में उष्मा उत्पन्न होती है। गर्मियो के दिनों में इस मुद्रा का अभ्यास ज्यादा नही करना चाहिए। जिन लोगो के शरीर में पित विकार है, उन्हें यह मुद्रा नही करनी चाहिए।

आकाश हस्त मुद्रा
अन्य हस्त मुद्राओं की भाँती यह भी एक मुद्रा है। इस मुद्रा में हाथ की सबसे बड़ी वाली अंगूली जिसे अनामिका कहते है जो आकाश तत्व का प्रतीक तथा अंगूठे याने अग्नि तत्व का प्रतीक है, दोनो अंगुलियों को एक दूसरे से मिलाते है। इसके अलावा अनामिका एवं अंगूठे को शुभ कार्यो पूजा, विवाह संस्कार आदि कार्यो में तिलक करने हेतु उपयोग में लाया जाता है। इस मुद्रा को करने के लिए वज्रासन, पद्मासन या अन्य आसन को प्रयोग में ला सकते है।


आकाश मुद्रा के लाभ
  • यह मुद्रा कान के रोगों में जैसे- कम सुनाई देना, कानो में आवाजें आना, कान का बहनाए बहरापन आदि रोगों में उपयोगी है।
  • इस मुद्रा से हडिडया मजबूत होती है।,
  • हृदय रोग के विकारो को दूर करने के लिए भी यह मुद्रा उपयोगी है।

सावधानियाँ— इस मुद्रा का अभ्यास चलते-फिरते नही करना चाहिए।

Post a Comment

0 Comments