जलोदर मुद्रा और पृथ्वी-मुद्रा


इस मुद्रा में अंगूठे तथा कनिष्ठा अंगुलियो को उपयोग किया जाता है। सर्वप्रथम किसी आसन मैट या चटाई पर पदमासन या सिद्धासन में बैठते है। इस मुद्रा में कनिष्ठा के पोर को अंगूठे के सबसे नीचे वाले घेरे पर लगाते है, तथा अंगूठे को कनिष्ठा के उपरी भाग में रखते है।



लाभ (jalodar mudra ke fayde)— शरीर में जब जल तत्व की मात्रा बढ़ जाती है। उससे कई विकार उत्पन्न हो जाते है, जल तत्व को संतुलित करने के लिए जलोदर मुद्रा को उपयोग में लाया जाता है।
  • शरीर के किसी भाग में सुजन आने पर यह मुद्रा लाभदायक है।
  • सर्दी-जुकाम होने पर भी यह मुद्रा लाभदायक है।
  • युरेनरी (मूत्र विकार) की समस्या में भी यह मुद्रा लाभदायक है।


  पृथ्वी हस्त मुद्रा


इस मुद्रा में अंगूठे तथा अनामिका अंगुली को उपयोग में लाया जाता है। सर्वप्रथम किसी आसन मैट या चटाई पर पदमासन या सिद्धासन में बैठते है। अनामिका तथा अंगूठे के पोरो को आपस में स्पर्श कराते है। जिससे पृथ्वी मुद्रा बनती है।


पृथ्वी मुद्रा के लाभ
  • इस मूद्रा से शारीरिक दुर्बलता एवं मन में चल रहे बेकार विचारो को दूर करने में सहायता मिलती है।
  • शरीर में स्फूर्ति आती है।

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