इस मुद्रा में दोनों हाथों का उपयोग किया जाता है। सर्वप्रथम किसी आसन मैट
या चटाई पर पदमासन या व्रजासन में बैठते है। वाएं हाथ के अंगूठे को दाहिने
हाथ की चारों अंगुलियों तर्जनी, मध्यमा, अनामिका एवं कनिष्ठा से पकडे़ तथा
वाएं हाथ की तर्जनी को दांए हाथ के अंगूठे के पोर से स्पर्श कराये एवं वाएं
हाथ की शेष अंगुली को दाऐ हाथ की मुट्ठी से लगाऐ इस प्रकार की मुद्रा
को शंख मुद्रा कहते है।
शंख मुद्रा के लाभ—
- इस मुद्रा से गले के रोग, पाचन रोग, नाभि के रोग, स्नायुमण्डल के रोग और वाणी सम्बन्धी रोग में यह मुद्रा लाभप्रद है।
- हकलाना, तुतलाना, कमर-दर्द आदि अनेक रोगों में यह मुद्रा लाभदायक है।
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