इस मुद्रा में अंगूठा तथा कनिष्ठा अंगुली को उपयोग में लाया जाता है। सर्वप्रथम किसी आसन मैट या चटाई पर पदमासन या सिद्धासन में बैठते है। अंगूठा तथा कनिष्ठा अंगूली के पोर को आपस में स्पर्श कराते है। जिसे वरुण मुद्रा कहते है।
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वरुण मुद्रा |
वरुण मुद्रा के लाभ— इस मुद्रा से ऐलर्जी, चर्मरोग एक्जिमा, शरीर में रक्त की कमी (ऐनिमिया) आदि अनेको रोगों में यह मुद्रा लाभप्रद है।
प्राण मुद्रा
इस मुद्रा में हाथ की तीन अंगुलियों को उपयोग
में लाया जाता है। जिसमें कनिष्ठा, अनामिका अंगूली एवं अंगूठे के पोरो को
आपस में स्पर्श कराते है। बाकि दो अंगुलियों को सीधा रखा जाता है।
प्राण-मुद्रा कहलाता है।
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प्राण मुद्रा |
प्राण मुद्रा से लाभ— इस मुद्रा से नेत्र रोग का
विकार दूर होता है, तथा जिन लोगों का व्रत या उपवास रहता है। उन्हें इस
मुद्रा से लाभ मिलता है। हृदय रोग में भी यह मुद्रा लाभदायक है।
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