हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

हनुमान जी प्रभु श्री राम के परम भक्त के नाम से जाने जाते है। हिंदू धर्म में हनुमान जी गहरी श्रद्धा एवं विश्वास के प्रतीक है। भक्त इन्हें अलग-अलग नामो मारुती, पवनपुत्र, केसरीनन्दन, शंकर सुवन और संकट मोचन आदि नामो से जानते है। बुरी शक्तियों के प्रभाव से बचने के लिए हनुमान जी को हमेशा याद किया जाता है। संकट मोचन का नाम लेने से ही सभी संकट दूर हो जाते है। सभी संकटो को दूर करने के लिए हनुमान चालिसा का पाठ किया जाता है। हनुमान चालीसा का पाठ करने से बल, बुद्धि, विद्या में बृद्धि होती है। हनुमान जी के स्मरण मात्र से ही भूत-पिचास सब भाग जाते है।


हनुमान जी भगवान शिव के अवतार— हनुमान जी भगवान शिव के साक्षात रूद्र अवतार है।

हनुमान जयंती शुभ मुहूर्त— हनुमान जयंति की तिथी 8 अप्रैल 2020
हिन्दू पंचाग के अनुसार हनुमान जयंती 2020 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को है। 

तिथि आरम्भ— 7 अप्रैल 2020 को दोपहर 12:01 से है। 
पूर्णिमा तिथि समापन— 8 अप्रैल 2020 को सुबह 8:04 मिनट तक है।

हनुमान जयंती व्रत— हनुमान जयंती के दिन भक्तो की मंदिरो में भीड़ लगी रहती है। भक्त स्नान कर साफ-सुथरे कपडे़ पहनकर  मंदिर में  हनुमान जी का ध्यान करते है, और व्रत का संकल्प लेते है। 

पूजा करते समय "ऊँ श्री हनुमंते नमः" का जाप करे, हनुमान जी को सिंदूर, पान का बीड़ा  एवं फल चढ़ाकर अपने माथे पर टीका लगा के इनका पूजन करे । कई भक्त इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ एवं सुन्दर कांड का पाठ कराते है। और फिर हनुमान जी को भोग लगाकर प्रसाद का वितरण करते है।  व्रत के दिन तामसिक भोजन एवं मंदिरा और नमक का सेवन नही करना चाहिए।

हनुमान जयंती जन्म कथा— हनुमान जी भगवान शिव के 11 रूद्र अवतार थे। अंजना वानर राज केसरी की पत्नी थी। हनुमान जी को बाल्यकाल में ही सभी देवों द्वारा शक्ति प्रदान की गयी थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता अंजना एवं केसरी ने भगवान शिव के समान पुत्र की चाह रखी एवं भगवान शिव की आराधना की भगवान शिव केसरी और अंजना की भक्ति से प्रसन्न हुए उन्होंने वायुदेव से अपने तेज पुँज को अजंना के गर्भ में स्थापित करने को कहा भगवान शिव ने वायु देव को कहा कि आपके इस कार्य करने हेतु मेरे रोद्र रूप को पवन पुत्र के नाम से जाना जायेगा। इस प्रकार हनुमान जी का जन्म माता अंजना के कोख से होता है।


हनुमान जी की आरती

आरती किजे हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरवर काँपे । रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥

अंजनी पुत्र महा बलदाई। संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए। लंका जाए सिया सुधी लाए॥

लंका सा कोट समुंद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जाई असुर संहारे। सियाराम जी के काज सँवारे॥

लक्ष्मण मूर्छित पडे सकारे। लानि संजिवन प्राण उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम कारे। अहिरावन की भुजा उखारे॥

बायें भुजा असुर दल मारे। दाहीने भुजा सब संत जन उबारे॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे॥

कचंन थाल कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमान जी की आरती गावे। बसहिं बैकुंठ परम पद पावें॥

लंका विध्वंश किए रघुराई। तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई॥
आरती किजे हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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