किलमोडा, दारू हल्दी के फायदे

दारू हल्दी (किलमोडा) एक झाडीदार वृक्ष है। जो हिमालय क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। स्थानीय क्षेत्रों में जहाँ यह उगता है। इसका महत्त्व नगण्य है। इसे झाडी समझकर काट दिया जाता है। इसे दारुहरिद्रा, जरिश्क, दारू हल्दी आदि नामो से भी जाना जाता है। ये बरबेरिडेसी कुल का पौधा है इसका वैज्ञानिक नाम बरबेरिस अरिस्टाटा है। यह पौधा मुख्यतः जंगलो में, खेतो के किनारे आदि स्थानों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यद्यपि इस पौधे को लोगों द्वारा नकारा जाता है। जबकि यह पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है।

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पौधे के सभी भागों जड़ तना, छाल पत्ती, फल आदि का उपयोग औषधीय रूप में किया जाता है। इस पौधे की पत्तियां किनारो से कांटेदार होती है, अप्रैल-मई के महिने में इसमें पुष्प खिलते है, इसके पुष्पों को कस्तुरीपुष्प कहा जाता है, जिनका रंग पीला होता है, तथा इसमें फल जुलाई-अगस्त के बीच बनते है। इसके फल पकने से पूर्व हरे रंग के अंगूर की भाँती दिखाई देता है। पकने के बाद यह बैगनी रंग का हो जाता है। किलमोडा दारु हल्दी की विश्वभर में लगभग 450 प्रजात्तिया पायी जाती है। इस पौधे की ऊँचाई लगभग 1400 मीटर से 2000 मी0 तक होती है। पौधे के जड़ तथा तना की छाल को हटाकर देखे तो इसका रंग पीला होता है।

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दारू हल्दी से लाभ

इस पौधे के छाल, जड़ तना, फल तथा अर्क व लकड़ियों को उपयोग में लाया जाता है। इसकी जड़ो तथा लकड़ियों में बरवेरिन हाइड्रोक्लोराइड नामक तत्व पाया जाता है। इसकी छाल तथा जड़ो से अर्क निकालकर औषधी तैयार की जाती है, जिसका उपयोग नेत्र रोगों के उपचार में किया जाता है। इसके अलावा इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी वायरल, एंटी डायबेटिक, एंटी बैक्ट्रीयल तत्व पाये जाते है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट नामक तत्व पाया जाता है, जिसका उपयोग कैंसर मारक दवा बनाने के लिए किया जाता है। इसमें एंटी डायबेटिक नामक तत्व होने के कारण इसका उपयोग डायबिटिज को नियंन्त्रण करने में किया जाता है। 

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