पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला भीमल का पेड़ सदा-हरा-भरा रहने वाला पेड़ है। आज आधुनिक युग में इससे कई प्रकार के प्रोडक्ट बनाये जाते है। जैसे चप्पले, टोकरी आदि। जिनका उपयोग न केवल स्थानीय क्षेत्रों में किया जाता है। अपितु विदेशों में भी भीमल से बने उत्पादों की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। स्थानीय लोग इसे भीमल, भ्युल, भिकू आदि के नाम से जानते है।
यह भीमल पहाड़ी क्षेत्रों के गांवो में खेतो के किनारे पाया जाता है। इसके पौधे के सभी भागो को उपयेाग किया जाता है। इसके तना, फल, लकड़ी और रेशा सभी उपयोगी होती है। इसका वैज्ञानिक नाम ग्रेवीया अपोजीटीफोलिया है। इसके पेड़ की ऊँचाई 9 मी0 से 12 मी0 होती है। भीमल को वंडर ट्री के नाम से भी जानते है।
भीमल के उपयोग
भीमल के पेड़ की पत्तियां चौडी होती है, जिसका उपयोग दुधारू पशुओं के चारे के लिए किया जाता है, तथा इसकी टहनियों को सुखाया जाता है, उसके बाद टहनियों को गधेरे या तालाब में पानी मे रखकर रख देते है, तथा टहनियों को पत्थर या किसी अन्य वजनदार वस्तु को उसके उपर रख देते है, ताकि टहनी पूर्ण रूप से पानी में डूब जाए। कुछ समय पश्चात् इन टहनियों को निकालकर इससे रेशों को अलग कर देते है, जिनसे रस्सी तैयार की जाती है। इसका उपयोग पशुओं को खूँटी से बाधने के लिए, पशुओं के चारे लाने एवं जंगल से लकड़ी के गठ्ठो को बाँधने के लिए किया जाता है। भीमल की कोमल शाखाओं को तोड़कर उसे बारिक पीसकर उसका उपयोग शैम्पू के रूप में किया जाता है।
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