कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड में क्रोंच पर्वत पर स्थित है, इन्हें दक्षिण भारत में मुरुगन स्वामी के नाम से जाना जाता है।

भगवान शिव के जयेष्ठ पुत्र कार्तिक स्वामी का मंदिर उत्तराखण्ड में रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। जो घिमतौली पोखरी मार्ग पर 37 किमी0 की दूरी पर कनक चोरी गांव से साढे़ तीन किमी0 की पैदल यात्रा कर क्रोच पर्वत आता है। जहाँ भगवान कार्तिकेय स्वामी का मंदिर है।

कार्तिक स्वामी दक्षिण भारत में मुरूगन स्वामी के नाम से भी जाना जाता है। क्रोच पर्वत पर बना यह मंदिर भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय जी को समर्पित है। समुद्रतल से इसकी ऊँचाई 3048 मीटर है। मंदिर चारों ओर हिमालय की सुन्दर पहाड़ियो से घिरा हुआ है। क्रोंच पर्वत तक पहुँचने के लिए यद्यपि कुछ दुरी पैदल तय करनी पड़ती है। यात्रा के दौरान प्राकृतिक दृश्यो से घिरा यह मार्ग मानसिक शांति प्राप्त करता है। जैसे ही पैदल यात्रा से क्रोंच पर्वत पर पहँचते है।




यहाँ के प्राकृतिक मनोरम दृश्य देखने के पश्चात् सारी थकान छुमन्तर हो जाती है। मंदिर से चैखंबा, त्रिशुल पर्वत के दर्शन होते है। इसके अलावा मंदिर के सामने हरियाली देवी, मद्महेश्वर, तुंगनाथ, बद्रीनाथ, रूद्रप्रयाग के शिखर आकर्षक के केन्द्र है।

भगवान कार्तिकेय ने राक्षस ताड़कासुर का वध कर देवताओं को ताड़कासुर के भय से मुक्त किया। इन्हें दक्षिण भारत में मुरुगन स्वामी के नाम से जाना जाता है।



पौराणिक मान्यताओं के अनुसार- भगवान शिव ने दोनों पुत्रों को कहा कि जो भी संसार का पूरा चक्कर लगाकर पहले आयेगा वह प्रथम पुज्य का अधिकारी होगा। इस प्रकार भगवान कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर सवार होकर संसार के भ्रमण पर निकले और दुसरी तरफ गणेश जी जिनका बाहन चूहा था। उन्होनें अपने माता-पिता का चक्कर लगाया। और इस प्रतियोगिता में विजयी हुये। उनके लिए माता-पिता ही उनका संसार था।

जब कार्तिक स्वामी जी पूरे संसार का चक्कर लगाकर आये तो वे गणेश जी की विजय की घोषणा सुनकर क्रोधित हो उठे। और कैलाश छोड़कर क्रोंच पर्वत पर चले गये। मान्यता है। इन्होनें अपने मांस-और हड्डियाँ माता-पिता को दे दिया।




आज भी इनके शरीर की हड्डियाँ मंदिर में मौजूद है, जिन्हें लोगों द्वारा पुजा जाता है। मान्यता है, कि भगवान कार्तिकेय आज भी क्रोंच पर्वत पर तपस्या में है।  


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