भीष्म प्रतिज्ञा क्या थी, कैसे पडा देवव्रत का नाम भिष्म

राजा शातंनु गंगा से उत्पन पुत्र देवव्रत को पाकर अत्यंत खुश थे, वे देवव्रत को लेकर अपने नगर में लौटते है। और देवव्रत को राजकुमार के रूप में सुशोभित करते है। इस प्रकार राजा शांतनु गंगा के विचार में खोये रहते है। देवव्रत का नाम भीष्म क्यो पडा तथा भीष्म प्रतिज्ञा क्या थी आइये जानते है इस लेख से

राजा शांतनु और सत्यवती

एक दिन राजा टहलते-टहलते यमुना नदी के किनारे गये, तभी उन्हें एक सुन्दर युवती जिसका नाम सत्यवती था दिखाई दी तो वह इस सुन्दर युवती पर मोहित हो गये, और उसे अपनी पत्नी बनाना चाहा। राजा उस सुन्दर युवती से प्रेम की याचना करता है, सत्यवती राजा को बताती है, कि उसके पिता मल्लाहो के सरदार है यदि वे उसके पिता से आज्ञा ले ले तो वह इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार है।

इस प्रकार राजा शांतनु युवती के पिता से मिलता है, और बताता है, कि वह उसकी पुत्री से विवाह करना चाहता है। मल्लाह (केवट) राजा के सामने अपनी शर्त रखता है, और कहता है, मेरी पृत्री द्वारा उत्पन्न पुत्र ही आपके बाद सिहासन का उत्तराधिकारी होगा। क्या आप मुझे इस बात का वचन दे सकते है। राजा ने जब केवट की बात सुनी तो वे बहुत दुखी हुये, क्योकि वे अपने बाद राज सिहासन पर अपने पुत्र देवव्रत को देखना चाहते थे, इस प्रकार राजा दुखीः मन से उस जगह से चल दिये मन ही मन यही बात उन्हें अन्दर से कुदेरती रही। राजा का पुत्र देवव्रत जब अपने पिता शांतनु को परेशान पाते है, तो वह राजा से कहते है, कि ऐसा कोई भी सुख नही जो राजा के महल में उपलब्ध नही है, फिर भी आप इतने परेशान क्यो है। राजा को अपने पुत्र को समझाने में देर नही लगी राजा ने घुमा फिराकर बात कर देवव्रत को शांत कर दिया।

देवव्रत समझ नही पा रहा था कि आखिर बात क्या है, वह राजा के सारथी मिलता है, तथा घटना के बारे में पूछता है, सारथी केवट और राजा के मध्य हुये बात को देवव्रत को बताता है कि केवट ने राजा के साथ अपनी पुत्री के विवाह के लिए क्या वचन माँगा, इस प्रकार देवव्रत केवट के पास जाता है केवट फिर से वही शर्त रखता है, कि राजा के बाद राज सिहांसन पर केवल उसकी पुत्री से उत्पन्न पुत्र ही बैठेगा।

देवव्रत का नाम भीष्म पितामह क्यों पड़ा

देवव्रत केवटराज से कहता है, यदि आपकी आपत्ति यही कारण है, तो मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि मेरे पिता के बाद सत्यवती का पुत्र ही राजा बनेगा तथा मै कभी भी राज्य का लोभ नही करूगाँ। केवटराज ने कहा कि मुझे आपकी बात पर तो पूरा भरोसा है, लेकिन आपके द्वारा उत्पन्न पुत्रों से में ऐसी आशा कैसे रख सकता हूँ। आपके जैसा वीर का पुत्र भी तो वीर ही होगा। ऐसा भी हो सकता है कि आपका पुत्र मेरे नाती का राज्य छीन ले। इस बारे में आपके विचार क्या है। केवटराज का प्रश्न देवव्रत के भविष्य का बलिदान देने की ओर सेकेत कर रहा था। देवव्रत ने केवटराज को कहा कि मैं जीवनभर ब्रहृाचारी रहूँगा। और विवाह भी नही करूगाँ तो मेरी संन्तानें कहाँ से होगी। अब तो आप मेरे पिता द्वारा दिये गये प्रस्ताव को स्वीकार करोगो।


किसी ने ऐसा सोचा भी नही की देवव्रत ऐसी कठोर प्रतिज्ञा कर लेगे। देवव्रत के इस कठोर प्रतिज्ञा से ही इनका नाम इसी दिन से भीष्य पड़ गया। इस प्रकार केवटराज ने अपनी पुत्री का विवाह देवव्रत के पिता राजा शांतनु के साथ किया। राजा शांतनु से सत्यवती से दो पुत्र हुये- चित्रागद और विचित्रवीर्य केवटराज की शर्त के अनुसार राजा शांतनु की मुत्यु के पश्चात् सत्यवती का पुत्र चित्रागद हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे लेकिन किसी युद्ध में मारे गये। इसके बाद विचित्रवीर्य सिंहासन पर बैठे इसनी दो रानियाँ थी अंबिका और अंबालिका अंबिका के पुत्र थे धृतराष्ट्र और अंबिलिका के पुत्र पांडु धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाये और पांडु के पुत्र पांडव कहलाये।

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