द्रोणागिरी पर्वत उत्तराखण्ड की सुन्दर पहाडियों में स्थित चमोली जिले के जोशीमठ नीति मार्ग पर स्थित है। जहाँ के दृश्य मनमोहक होने के साथ-साथ दिल को छू लेने वाले भी होते है। द्रोणागिरी जोशीमठ से 55 किमी0 की दूरी पर स्थित है। यहाँ से लगभग 13 किमी0 की दूरी पैदल तय करनी होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्रोणागिरी पर्वत से ही हनुमान जी संजीवनी बूँटी लाये थे। आज भी यहाँ के स्थानीय लोगों द्वारा द्रोणागिरी पर्वत की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब लक्ष्मण जी मूर्छित हुये थे तो हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत से ही संजीवनी बूँटी लाये थे।
जहां से हनुमान जी संजीवनी बूँटी लाये थे, वहाँ के गांववासी हनुमान जी से थे नाराजमान्यता है, कि जब हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत से संजीवनी बूँटी लेकर श्रीलंका गये थे, जब हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत पर पहुँचे तो वे द्रोणगिरी पर्वत को पहचान न सके वे यहाँ स्थित द्रोणागिरी गांव में आए उन्हें एक बृद्ध महिला दिखाई दी उन्होनें उस महिला से द्रोणगिरी पर्वत के बारे में पूँछा तब महिला ने उन्हें द्रोणगिरी पर्वत कि ओर इशारा करके बताया हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत पर गये पर संजीवनी बूँटी पहचान न सके।
इस प्रकार वे दोवारा उसी गांव में गये और उस महिला से संजीवनी संजीवनी बूँटी के बारे में पूछा तब उस महिला ने उन्हें संजीवनी बूँटी की ओर इशारा करके बताया, जिस पर संजीवनी बूँटी थी, हनुमान जी के यहाँ से संजीवनी बूँटी का पहाड़ ले जाने के कारण ही यहाँ के लोग इनसे नाराज हो गये। इसी कारण इस गांव में हनुमान जी की पूजा नही की जाती है। एवं लाला रंग के ध्वज पर भी परहेज है।
यहाँ का मौसम
सर्दियो के मौसम में यहाँ के स्थानीय निवासी अक्टूबर माह के अंत तक कुछ महिनों के लिए दूसरे गांवो में शिफ्ट हो जाते है, इस समय द्रोणगिरी पूर्ण रूप से बर्फ से ढक जाता है। चारों ओर बर्फ से ढके होन के कारण सर्दियों के मौसम में यहां पर रहना सम्भव नही है। इसलिए लगभग मई के महिने में यहां जब बर्फ पिघल जाती है तो तब यहां के स्थानीय लोग पुनः इस स्थान पर अपना रेन-बसेरा जमाते है।
यहां आने के बाद सभी गांव वालो द्वारा एक अनुष्ठान किया जाता है, जिसे यहां की भाषा में रगोसा कहाँ जाता है। यहां के स्थानीय निवासी भोटिया जनजाती के लोग होते है। गर्मियों के मौसम में यहां काफी ट्रेकर का आना-जाना भी लगा रहता है।
आज भी मौजुद है हनुमान जी द्वारा लाया गया पहाड़
हनुमान जी द्वारा जो संजीवनी बूँटी का पहाड़ लाया गया था आज भी वह पहाड़ श्रीलंका में मौजुद है जिसे आज रूमास्सल्ला पर्वत के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है, कि जब हनुमान जी पहाड़ को लाये थे, तो इसके कई टुकडे़ श्रीलंका
के समुद्र के किनारे गिरे थे, जहाँ-जहाँ इस पर्वत के टुकडे़ गिरे आज भी
वहाँ की जलवायु तथा वनस्पति दूसरे जगह की जलवायु से भिन्न है।
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