सायद ही प्रकृती में ऐसा कोई वृक्ष हो जिसका मानव जीवन में कोई उपयोग न हो, इनमें से एक है, चंदन का वृक्ष, जिसका वर्णन प्राचीन काल से ही मिलता है। तुलसीदास जी के दोहे में भी चंदन का जिक्र किया गया है। बजरंगबली ने तोते का रूप धारण करते हुये तुलसीदास को इस दोहे के माध्यम से सामने खडे़ भगवान श्री राम के बारे में बताया भगवान श्री राम का दर्शन पाकर तुलसीदास जी उन्हें निहारते रहे। भारत में होने वाला चंदन विश्वभर में सर्वोच्च स्थान है, चंदन के वृक्ष कर्नाटक के जंगलो में पाये है।
चित्रकूट के घाट पर भई संतान की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुवीर।।
ये वृक्ष एक सदाबहार वृक्ष है, इसका पेड़ लगभग 20 सालों में परिपक्व होता है। इसके बाद इससे चन्दन प्राप्त किया जाता है, जैसे-जैसे इसका पेड का आकार तथा जड़ का आकाऱ बड़ा होता है, वैसे-वैसे इसमें सुगंधित तेल की मात्रा में भी बढ़ोतरी होती है। चंदन के वृक्ष की लंबाई 18मी0 से 20 मी0 तक होती है, इसके पत्ते अण्डाकार तथा पत्तों का अग्रभाग नुकीला होता है, चंदन में खिलने वाले फूल भूरे-बैगनी रंग के होते है, तथा फलों का आकार गोलाकार होता है। इसका वैज्ञानिक नाम सैन्टेलम ऐल्बम (Saintelam ailbam) है, संस्कृत में इसे चन्दन, श्रीखण्ड नाम से जाना जाता है। चंदन के पेड़ की परिपक्व लकड़ी को हीरा कहा जाता है, जिसमें खुशबु होती है,
चंदन का उपयोग हवन सामग्री बनाने, अगरबत्ती, मूर्तिया, खिलौने और विभिन्न प्रकार के साज-सज्जा वाले समान बनाने में किया जाता है। इसके अलावा चंदन की लकड़ी को आसवन करके तेल प्राप्त किया जाता है, इसका तेल लकड़ी की अपेक्षा जड़ो से अधिक निकलता हैै। चंदन से प्राप्त तेल का उपयोग विभिन्न प्रकार के सौन्दर्य के उत्पादों को बनाने में किया जाता है। इसके तेल का निर्यात अमेरिका, फ्रांस, इटली, सिंगापुर, जापान आदि देशों में किया जाता है।
चंदन के फायदे (chandan benefits)
मुँह में कील-मुंहासें तथा झाई होने पर चंदन को घीस कर उसका पेस्ट का प्रयोग करने से कील-मुंहासें तथा झाई की समस्या दूर हो जाती है। शरीर में दुर्गन्ध आने पर चन्दन काफी लाभप्रद होता है। चंदन से प्राप्त तेल ऐटीसेप्टिक है, जो जले, कटे, सूजन, घाव आदि में लाभदायक है। ललाट पर चंदन का तेल लगाने से मन-मस्तिष्क शांत और शीतल रहता है।
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