हिंगलाज शक्तिपीठ (hinglaj shakti peeth) जो 51 शक्ति पीठों में से एक है।

हिगंलाज शक्ति पीठ जो 51 शक्ति पीठों में से एक है। हिंगलाज मंदिर की यात्रा कराची में स्थित नारायण मंदिर से प्रारम्भ होती है। हिंगलाज माता का मंदिर हिंगला नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर की खास बात यह है, कि यहाँ हिन्दु और मुस्लमान दोनों ही माता के दर्शन के लिए आते है। मंदिर में श्री गणेश तथा माता कालिका की प्रतिमा भी विराजमान है। यहाँ आसापुरा गाँव में एक धर्मशाला है, जहाँ लोग विश्राम हेतु रुकते है।

मुस्लमान लोगों द्वारा इस मंदिर को नानी का मंदिर या नानी का हज कहा जाता है। यह मंदिर माता वैष्णुदेवी मंदिर की तरह एक गुफा के अन्दर स्थित है। मंदिर के पास ही में एक झरना है, जिसे गुरु गोरखनाथ झरना कहते है। मान्यता है, कि यहाँ माता स्नान के लिए आती है।

मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति हिंगलाज माता के मंदिर के दर्शन कर लेता है, वह पूर्व जन्म के कर्मो के फलो से मुक्त हो जाता है। इस मंदिर में गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव और दादा मखान आदि साधु-संत माता के दर्शन के लिए आये। इस मंदिर में कोई दरवाजा नही है। यहाँ ब्रहृाकुण्ड और तीरकुंड दो प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।



इस स्थान पर गिरा था माता सती का एक अंग

इस स्थान पर माता सती का सिर गिरा था, जो एक शक्ति पीठ बन गया। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब माता सती ने कनखल में दक्ष प्रजापति द्वारा किये जाने वाले यज्ञ में भगवान शिव का अपमान हुआ तो माता सती इसे सहन न सकी जिस वजह से इन्होनें अपना देह त्यागा इस प्रकार भगवान शिव माता सती के मृत शरीर लेकर पूरे ब्रहृामाडं में घूमने लगे जिससे संसार का संचालन खतरे में पड़ गया, तब भगवन विष्णु ने अपने सुदर्शन से माता सती के मृत देह को 51 भागों में काट दिया इनमें से सिर का हिस्सा जो इस स्थान पड़ा और यह स्थान एक शक्ति पीठ बन गया। इस शक्ति पीठ की रक्षा के लिए भगवान शिव ने काल भैरव को नियुक्त किया।

पौराणिक मान्यतायें

भगवान राम द्वारा जब रावण का वध किया गया तो ब्राहृाण की हत्या के पाप से बचने के लिए उन्होनें यहाँ यज्ञ कराया। हिन्दु धर्म ग्रंथो के अनुसार भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ने यहाँ घोर तप किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम ने कई बार क्षेत्रीयों का अंत किया, कई क्षेत्रीय अपने प्राणों की रक्षा के लिए माता हिंगलाज की शरण में आये तब माता ने उन्हें ब्रहृम क्षत्रिय बना दिया इस प्रकार भगवान परशुराम ने क्षत्रियों को अभयदान दिया।

हिंगलाज मंत्र

ॐ हिंगले परम हिंगले अमृतरुपिनी तनु शक्ति मनः शिवे श्री हिंगलै नमः स्वाहा

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