एक ऐसे संत जिन्होनें सात समुद्र पार जापान, अमेरिका जाकर भारतीय धर्म और वेदान्त का संदेश दिया, स्वामी रामतीर्थ के बचपन का नाम तीर्थराम था, स्वामी रामतीर्थ का जन्म 22 अक्टूबर 1873 में पंजाब में गुजरावाला के मुरारीवाला गांव में हुआ था, इनके पिता का नाम हीरानन्द तथा माता का नाम निहालदेई था, इनकी पत्नी का नाम शिवोदेइ था।
स्वामी रामतीर्थ का कथन
स्वामी रामतीर्थ जी की शिक्षा
इन्होनें सन् 1888 में हाईस्कूल की परीक्षा तथा सन् 1890 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की, सन् 1893 में पंजाब विश्वविद्यालय से इन्होनें बी0ए0 की डिग्री पूरे प्रांत में प्रथम स्थान से प्राप्त की, इस दौरान इन्हें 10 रुपये की छात्रवृति भी मिली तथा सन् 1895 ई0 में इन्होनें गणित विषय के साथ एम0ए0 की डिग्री ली इसी कालेज में इनकी नियुक्ति गणित विषय के प्रोफेसर पद हुई। इस कालेज में भक्ति विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें इन्होनें भाग लिया, इनके विचार आध्यात्म से जुडे हुये थे, जिन्होनें भी इनके विचार सुने वे इनसे काफी प्रभावित हुये। यहाँ तक कि मदन मोहनमालवीय जी भी इस समारोह में उपस्थित थे, जो स्वामी रामतीर्थ के विचारों को सुनकर अत्यधिक प्रभावित हुये।
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सन् सन् 1897 में जब स्वामी विवेकानन्द जी लाहौर आये जहाँ स्वामी विवेकानन्द जी ने अपनी सभा आयोजित की इस कार्यक्रम में स्वामी रामतीर्थ जी भी गये थे। स्वामी विवेकानन्द से मिलने के बाद इनका इनकी रुचि आध्यात्म में और अधिक बढ़ गयी।
स्वामी रामतीर्थ जी की विदेश यात्रा
सन् 1898 में इन्होनें ऋषिकेश में गंगा के तट पर ब्रह्मपूरी के निकट तप किया, टिहरी के नरेश कीर्तिशाह इनसे काफी प्रभावित थे, जो कि अनीश्वरवादी थे, टिहरी नरेश कीर्तिशाह स्वामी रामतीर्थ के विचारों से काफी प्रभावित हुये और उनकी ईश्वर के प्रति श्रद्धा बढ़ी और आस्तिक हो गये। टिहरी नरेश ने इन्हें धर्म और वेदान्त का ज्ञान देने के लिए जापान भेजा जहाँ ये लगभग एक मास तक रहे, इसके पश्चात् ये अमेरिका गये जहाँ पर इन्होनें 2 वर्ष तक प्रवास किया। इन्होनें मिश्र की मस्जिद में फारसी में भाषण दिया इनके भाषणों को सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो गये थे, विदेश से लौटने के बाद इन्होनें कई जगह प्रवचन दिये। इसके पश्चात् ये पुनः टिहरी आये, सन् 1906 में कार्तिक अमावस्या के दिन भागीरथी नदी में इन्होनें स्नान किया और जलसमाधी ले ली।
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