प्रकृति की सुन्दर अदभुत छटाओं से आच्छिद मां चंद्रबदनी मंदिर जिला टिहरी जनपद में चन्द्रकूट नामक पर्वत पर स्थित है, इस मंदिर में एक अखण्ड ज्योति निरन्तर प्रज्जवलित रहती है। इस स्थान का उल्लेख स्कन्दपुराण, महाभारत और देवी पुराण में स्पष्ट रूप से मिलता है।
यहां से समुद्रतल से उंचाई 8,000 फीट है, प्राचीन ग्रंथो में इस स्थान को भुवनेश्वरी पीठ के नाम से जाना जाता है। आदि जगतगुरु शंकराचार्य द्वारा यहां शक्तिपीठ की स्थापना की गयी, जो 52 शक्तिपीठों में से एक पीठ है, देवप्रयाग से यहा की दूरी 33 कि0मी0 है। यहां माता की मूर्ति की पूजा नही की जाती है, केवल श्रीयंत्र के रूप में माता की पूजा की जाती है।
मान्यता है, कि इस स्थान पर माता सती के बदन का भाग गिरा था जिस कारण इसके कोई दर्शन नही करता लोकमत के अनुसार एक बार अज्ञान वश एक पुजारी ने मूर्ति को देखना चाहा वह अंधा हो गया, यहा से सुरकंडा, केदारनाथ, बद्रीनाथ की चोटियों के आकर्षक दर्शन किये जा सकते है। मां चन्द्रबदनी के मंदिर में जो भी मन्नते मांगी जाती है, माता की कृपा से वे अवश्व ही पूरी होती है। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता भेंट स्वरूप चाँदी की छत्तर, फूल, कन्दमूल, फल, धूप-अगरबत्ती, चुन्नी चढ़ाते है। यहा से मन को शांति प्रदान करने वाले प्राकृतिक दृश्यों का नजारा देखने को मिलता है।
मां चंद्रबदनी मंदिर- देवी सती की पौराणिक कथा से जुड़ी है, जब माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने कनखल में एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नही किया गया।
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जब माता सती अपने पिता के घर पहुँची तो उसके पिता प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान किया गया। जिसे माता सती सहन न कर पायी और उन्होनें यज्ञ कुण्ड में अपनी आहुति दे दी। जब भगवान शिव को माता सती के बारे में पता चला तो उन्होनें दक्ष का सिर काट दिया। तथा माता सती का शरीर लेकर वहां से चल दिये। उस समय भयंकर प्रलय जैसी स्थिती उत्पन्न हो गयी, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया, जहां-जहां उनके शरीर के टुकडे़ गिरे वहां-वहां एक शक्तिपीठ बन गया। मान्यता है, कि चन्द्रकूट पर्वत पर माता सती का बदन गिरा जिस कारण यहां का नाम चन्द्रबदनी पड़ा।
मान्यता है, कि इस स्थान पर भगवान शिव ने सती के दुखः में व्याकुल होकर सती का स्मरण किया था। तब माता सती ने भगवान शिव को चन्द्र रूप् शीतल मुख में दर्शन दिये। ततपश्चात् भगवान शिव का दुखः दूर हो गया।
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