महात्मा बुद्ध के उपदेश पाकर मजदूर से लेकर सम्राट तक इनके शिष्य बन गये

महात्मा बुद्ध ने कई वर्षो तक भम्रण कर बोद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया तथा लोगों को उपदेश दिया मजदूर से लेकर सम्राट तक इनके उपदेशो को सुनने के पश्चात् इनके शिष्य बन गये। महात्मा बुद्ध का मानना था कि ”इच्छा ही दुःखो की जड़ है। "किसी वस्तु को पाने की इच्चा ही न हो तो उस वस्तु को खोने पर दुःख भी न होगा।"

महात्मा बुद्ध का जन्म- लुम्बिनी नामक स्थान में हुआ था, इनके पिता का नाम राजा शुद्धोधन तथा माता का नाम माया देवी था। इसने जन्म के एक सप्ताह के पश्चात् ही इनकी माता का देहान्त हो गया। इनकी मौसी प्रजापति गौतमी द्वारा इनका पालन पोषण किया गया। इनके बचपन का सिद्धार्थ था, ये हृदय से बहुत कोमल प्रवृति के थे, किसी भी दीन दुःखियों के दुख को ये देख नही पाते थे, विशेषकर बुढे़, बिमार, और कमजोर लोगों को देखकर ये बैचेन हो जाते थे।

सिद्धार्थ हमेशा सोच-विचार में खोये रहते थे, जब इनके पिता शुद्धोदन ने यह देखा तो वे मन ही मन चिंतित हो उठे और सोचने लगे कि सिद्धार्थ कही बैरागी होकर घर का त्याग न कर दें, इसलिए राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ का विवाह करना निश्चित किया ताकि वह बैराग्य जीवन में प्रवेश न कर पाये उन्होनें सिद्धार्थ का विवाह एक सुन्दर कन्या (कापिलायनी) यशोधरा से कर दिया। कुछ समय पश्चात् सिद्धार्थ और कापिलायनी (यशोधरा) ने एक पुत्र प्राप्त किया जिसका नाम राहुल रखा गया।

 

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सिद्धार्थ वैवाहिक जीवन के उपरान्त भी पहले की तरह सोच-विचारों में खाये रहते थे, आखिर एक दिन मध्यरात्री को जब उनकी पत्नी यशोधरा तथा पुत्र सोये थे वे चुपचाप उठकर घर को छोड़कर चल दिये। इस समय वे आलार-कालाम के पास गये जो कि एक योगी थे, यहाँ पर इन्होनें ने योग की विद्या सीखी पर वे मन ही मन अपने आप से संतुष्ठ नही थे, उन्हें स्वमं के प्रश्नों का जबाब नही मिल रहा था। तब वे एक अन्य योगी से मिले जिनका नाम उद्रक रामपुत्र था, इनसे भी सिद्धार्थ ने कई योग की विद्या सीखी, लेकिन यहां भी उन्हें अपने स्वमं के प्रश्नों का जबाब न मिला। अपने स्वमं के प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए वे बोधगया चले गये, जहाँ पर उन्होनें लगभग 6 वर्षो तक कठोर तप किया, तप के दौरान इनका शरीर काफी कमजोर हो गया था, जब ये गांव की और लौट रहे थे, तो एक कृषक की 11-12 साल की कन्या सुजाता ने इन्हें भोजन कराया जिससे इनके शरीर में कुछ शक्ति आयी लेकिन इनका मन अभी भी अशांत था, वे चाहते थे कि कोई तो उपाय होगा जिससे लोगों के दुःखों का अंत हो सके, सभी मानव नीरोगी हो जाय कभी भी कोई मुत्यु को प्राप्त न हो।

महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति

26 वर्ष की आयु में इन्हें बोधि गया बिहार में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुयी, और ये बुद्ध बन गये, जिसके पश्चात् इन्होनें कई स्थानों को भ्रमण किया और उपदेश दिये इनके द्वारा अधिकतर दिये गए उपदेश पाली भाषा में है। पाली भाषा यानी की जन-साधारण की भाषा ताकि प्रत्येक व्यक्ति उनके उपदेशो को आसनी से समझ सके। 80 वर्ष की आयु में इन्हें कुशीनगर में निवार्ण प्राप्त हुआ।


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